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पं. राजकुमार चतुर्वेदी के अनुसार इस मौके पर चांदी, तांबे के नाग-नागिन के जोड़े की शिव मंदिरों में पूजा होगी। झालाना और आस-पास के वन्य क्षेत्रों में सांप के बिल (बांबी) का पूजन किया जाएगा। गलता रोड व आमेर रोड सहित अन्य स्थानों पर नाग देवता को दूध पिलाकर पूजा की जाएगी। जयपुर सहित राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में पूजन में सांप की चांदी या तांबे की प्रतिमा की जगह प्रतीक स्वरूप रस्सी का उपयोग भी किया जाता है। नाग पंचमी पर ठंडा भोजन ग्रहण करने की परंपरा है। राजस्थान में नाग पंचमी को भाई पंचमी भी कहा जाता है।
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इस दिन घर में पूजन के अलावा, नाग देवता के निमित्त संपेरे को दूध, मिठाई के साथ अन्य सामग्री भी दी जाती है। कहीं-कहीं बांबी का पूजन कर उसकी मिट्टी को घर लाया जाता है। इस मिट्टी में कच्चा दूध मिलाकर इससे चूल्हे पर नाग देवता की आकृति बनाई जाती है। इसके पूजन के बाद भीगा हुआ बाजरा या मोठ खाने का भी रिवाज है। इन परंपराओं का आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ पालन किया जाता है।