मतदाता और पार्टी कार्यकर्ता की उम्मीदों पर फिरा पानी
राजनीतिक दलों के चुनाव से पहले के वादों में सबसे बड़ी हार मतदाता और पार्टी के आम कार्यकर्ता की होती है। जब टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस नियम बनाती है तो कार्यकताZ बार-बार टिकट मिलने वालों से मुक्ति की राह देखते हैं। वहीं क्षेत्र के अन्य नेता टिकट की उम्मीद में दिल्ली की भागदौड़ शुरू कर देते हैं। कांग्रेस में इस बार यही हो रहा है।
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सर्वे धरा रह गया, कार्यकर्ता मायूस
कांग्रेस में जब नीति के आधार पर ही टिकट देने का दावा किया गया तो तमाम विधानसभा क्षेत्रों के युवा नेताओं ने जयपुर-दिल्ली की दौड़ तेज करने के साथ ही क्षेत्र में भी खूब भागदौड़ की। नाम भी उनके सर्वे में शामिल हुए, लेकिन टिकट वितरण में विधायकों की ही लॉटरी लगने से वे पदाधिकारी और कार्यकर्ता मायूस होकर बैठ गए हैं, जो लंबे समय से पार्टी में काम कर रहे थे।
सर्वे पर ही प्रश्नचिह्न लगा रहे नेता
सर्वे को आधार बनाने के दावे करने वाली पार्टी के ही कुछ नेता अब सर्वे पर ही प्रश्नचिह्न लगा रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि सर्वे करने वाले किस तरह मोटी रकम वसूलते हैं और किया उलटफेर करते हैं, यह सभी जानते हैं।
वंशवाद पर ही फोकस
कांग्रेस ने अब तक 76 टिकट दिए हैं। इनमें विधायकों को ज्यादा टिकट दिए हैं, लेकिन जहां विधायकों या पिछले दावेदारों के टिकट काटे गए हैं, वहां पति या पत्नी को टिकट दिए गए हैं। यह करिश्मा हुआ है अलवर के रामगढ़ और बीकानेर की नौखा विधानसभा सीट पर। इससे पहले कांग्रेस ने उप चुनाव में भी सरदार शहर, सुजानगढ़ और सहाड़ा सीट पर दिवंगत नेताओं के पुत्र व पत्नी को टिकट देकर चुनाव में उतारा।
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नीतियों के विरुद्ध जाकर मिले टिकट
सत्तर पार के नेताओं की बात करें तो कांग्रेस अब तक तीन नेताओं को टिकट दे चुकी है। सभी दिग्गज नेता हैं। इसी प्रकार दो बार हारे नेताओं में अर्चना शर्मा, नसीम अख्तर और रघुवीर मीणा शामिल हैं। दावा किया जा रहा है कि पार्टी के पास यहां और ज्यादा बेहतर विकल्प नहीं थे।
प्रभारी के बयान के मायने धरे रहे गए
कुछ समय पहले एक कार्यक्रम में प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा ने ही कहा था कि नए और युवा नेताओं के लिए बड़े नेताओं को सीट छोड़ देनी चाहिए। रंधावा के इस बयान ने युवाओं का बड़ा सुकून दिया था। लेकिन बयान के नए नेता मायने ही निकालते रह गए।