प्रदेश के ग्रामीण विकास विभाग के अनुसार मनरेगा के तहत रोजगार देने में तमिलनाडु दूसरे और आंध्र प्रदेश तीसरे स्थान पर है। 9 फरवरी तक के आंकड़ों के मुताबिक राजस्थान में मनरेगा पर वित्तीय वर्ष 2016 -2017 में अब तक 4250 करोड़ रुपए श्रम और सामग्री पर खर्च हो चुके हैं।
इसमें से 3600 करोड़ रुपए केंद्र सरकार की तरफ से जबकि 650 करोड़ रुपए राजस्थान सरकार की तरफ से खर्च किए गए हंै। मनरेगा के तहत बाड़मेर में सबसे ज्यादा मजदूर कार्य कर रहे है। बाड़मेर में 1 लाख 37 हजार 81 लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार दिया जा रहा है।
वहीं भीलवाड़ा दूसरे स्थान पर हैं, जहां 1 लाख 7 हजार 926 मजदूरों को मनरेगा के तहत प्रतिदिन रोजगार दिया जा रहा है। डूंगरपुर में 1 लाख 7 हजार 910 और अजमेर में प्रतिदिन 1 लाख 4 हजार 155 लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।
मनरेगा के आयुक्त देवाशीष पुष्टि के मुताबिक मनरेगा में मांग आधारित कार्य में कोई कमी नहीं आने दी जा रही है साथ ही बजट में कोई कमी नहीं है। उन्होंने बताया कि मजदूरी सीधे खातों मे ऑनलाइन दी जा रही है।
केंद्र सरकार ने वित्तीय वर्ष 2017-2018 के लिए मनरेगा के लिए 48 हजार करोड़ के बजट का प्रवधान रखा है जबकि बीते वित्तीय वर्ष 2016-2017 में यह धनराशि 38,500 करोड़ रुपए थी।