वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक के अलावा भी उनकी स्वाधीनता की लड़ाई में एक और पशु था जो चेतक के सामान ही वीर था और उसकी स्वामी भक्ति भी वैसी ही थी, वह था महाराणा प्रताप का गज ‘रामप्रसाद’।
जब दुश्मनों आक्रांता से युद्ध किया जाता है तो घोड़ों के साथ में हाथियों की भी अहम भूमिका होती थी। वह पैदल सेना को तहस-नहस करके एक मार्ग बनाने में बड़ी भूमिका निभाते थे। इनके द्वन्द्व युद्ध में भी सहायक होते थे। ऐसे ही हाथियों का हल्दीघाटी के युद्ध में भी महत्वपूर्ण योगदान रहा।
लूणा के बाद रामप्रसाद ने लड़ा युद्ध
रामप्रसाद नाम का हाथी मेवाड़ का सर्वश्रेष्ठ हाथी था। इसने युद्ध में मुगल सेना में हड़कंप मचा दिया था। हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ के हाथी लूणा का सामना मुगल सेना के हाथी गजमुक्ता से हुआ था। लूणा के महावत को गोली लगने के कारण वह लूणा हाथी बिना महावत के वापस अपने खेमे में आ गया था। युद्ध के दौरान रामप्रसाद को बनाया बंदी
इसके बाद मेवाड़ की ओर से रामप्रसाद को युद्ध लड़ने के लिए भेजा गया। मुगल सेना ने रामप्रसाद के विरूद्ध रणमदार नाम के हाथी को उतारा। युद्ध में एक समय ऐसा भी आया जब रामप्रसाद मुगलों के हाथी रणमदार पर भरी पड़ रहा था। इसी समय इसके महावत को एक तीर लग गया और वह शहीद हो गया। जिसके बाद भी रामप्रसाद निरंतर मुगल सेना को कुचले रहा। लेकिन मुगल हाथी सेना का सेनापति हुसैन खां अवसर पाकर रामप्रसाद पर चढ़ा गया और उसे नियंत्रित कर के मुगल खेमे में ले गया। वहां इसे बंदी बना लिया गया।
रामप्रसाद ने त्याग दिया अन्न-जल
हुसैन खां ने इस विस्मित करने वाले जीव को अकबर को उपहार के रूप में दिया। इसे पाकर अकबर अति प्रसन्न हुआ। अकबर के पास पहले ही इसकी प्रसिद्धि पहुंच चुकी थी। उसने इसका नाम बदलकर पीरप्रसाद रख दिया था। अपने स्वामी और स्वदेश से दूर जाना रामप्रसाद के लिए हृदयविदारक था। उसने इस शोक में अन्न-जल का त्याग कर दिया। और युवा अवस्था में ही यह बलशाली और पराक्रमी जीव स्वामी भक्ति की वेदना से मृत्यु को समर्पित हो गया।