वहीं भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी सोशल मीडिया के जरिए सूरजमल को श्रद्धांजलि दी। राजे ने लिखा, ‘शौर्य एवं समर्पण की अद्भुत मिसाल, भरतपुर संस्थापक, महायोद्धा महाराजा सूरजमल की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।’
वहीं उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने मंगलवार शाम भरतपुर ऑडिटोरियम में सूरजमल के स्मृति दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में शिरकत की और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके सूरजमल के वंशज एवं प्रदेश के पर्यटन मंत्री विश्वेन्द्र सिंह भी मौजूद रहे। विश्वेन्द्र सिंह ने बुधवार को महाराजा सूरजमल स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
इसी तरह भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सतीश पूनिया ने भी उन्हें श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि विश्व के सिरमौर, भारत भूमि के अजेय महायोद्धा महाराजा सूरजमल के बलिदान दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि।’
जाने कौन थे महाराजा सूरज मल
– महाराजा सूरज मल या सूरज सिंह (फरवरी 1707 – 25 दिसम्बर 1763) राजस्थान के भरतपुर के हिन्दू जाट शासक थे। – उनका शासन उत्तर प्रदेश के आगरा, अलीगढ़, इटावा, हाथरस, मैनपुरी, मथुरा, मेरठ जिले के साथ ही राजस्थान के भरतपुर, धौलपुर, मेवात, रेवाड़ी जिले और हरियाणा के गुरुग्राम, रोहतक जिलों के अन्तर्गत आने वाले क्षेत्रों में था।
– राजा सूरज मल में वीरता, धीरता, गम्भीरता, उदारता, सतर्कता, दूरदर्शिता, सूझबूझ, चातुर्य और राजमर्मज्ञता का सुखद संगम सुशोभित था। मेल-मिलाप और सह-अस्तित्व तथा समावेशी सोच को आत्मसात करने वाली भारतीयता के वे सच्चे प्रतीक थे।
– राजा सूरज मल के समकालीन एक इतिहासकार ने उन्हें ‘जाटों का प्लेटों’ कहा है। इसी तरह एक आधुनिक इतिहासकार ने उनकी स्पष्ट दृष्टि और बुद्धिमत्ता को देखने हुए उनकी तुलना ओडिसस से की।
– सूरज मल के नेतृत्व में जाटों ने आगरा नगर की रक्षा करने वाली मुगल सेना (गैरिज़न) पर अधिकार कर लिया। 25 दिसम्बर 1763 ई में दिल्ली के शाहदरा में मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में सूरज मल की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के समय उनके अपने किलों पर तैनात सैनिकों के अलावा, उनके पास 25,000 पैदल सेना और 15,000 घुड़सवारों की सेना थी।
– सन 1733 में भरतपुर नगर की नींव डाली गई। सन 1732 में बदनसिंह ने अपने 25 वर्षीय पुत्र सूरजमल को डीग के दक्षिण-पश्चिम में स्थित सोघर गांव के सोघरियों पर आक्रमण करने के लिए भेजा। सूरजमल ने सोघर को जीत लिया। वहाँ राजधानी बनाने के लिए किले का निर्माण शुरू कर दिया। भरतपुर में स्थित यह किला लोहागढ़ किला के नाम से जाना जाता है। यह देश का एकमात्र किला है, जो विभिन्न आक्रमणों के बावजूद हमेशा अजेय व अभेद्य रहा। बदन सिंह और सूरजमल यहां सन 1753 में आकर रहने लगे।
– भरतपुर के किले का निर्माण कार्य शुरू करने के कुछ समय बाद बदनसिंह की आंखों की ज्योति क्षीण होने लगी। इसलिए उसने विवश होकर राजकाज अपने योग्य और विश्वासपात्र पुत्र सूरजमल को सौंप दिया। वस्तुतः बदनसिंह के समय भी शासन की असली बागडोर सूरजमल के हाथ में रही।
– मुगलों, मराठों व राजपूतों से गठबंधन का शिकार हुए बिना ही सूरजमल ने अपनी धाक स्थापित की। घनघोर संकटों की स्थितियों में भी राजनीतिक तथा सैनिक दृष्टि से पथभ्रांत होने से बचते रहे। बहुत कम विकल्प होने के बावजूद उन्होंने कभी गलत या कमजोर चाल नहीं चली।