नाराज होकर जोधपुर में बस गए थे लोक देवता बाबा रामदेव के गुरू, तब से यात्रा के दौरान चल पड़ी ये मान्यता
लोक देवता बाबा रामदेव ( lok devta baba ramdev ) से उनके गुरू बालीनाथ नाराज हो गए थे और जोधपुर आकर बस गए थे। इसके बाद रामदेवरा यात्रा में एक मान्यता चल पड़ी। आइए आज बताएं क्या है वो मान्यता और कैसे उसका चलन हुआ…
नाराज होकर जोधपुर में बस गए थे लोक देवता बाबा रामदेव के गुरू, तब से यात्रा के दौरान चल पड़ी ये मान्यता
जयपुर। पुरानी मान्यताओं की मानें तो लोक देवता बाबा रामदेव ( lok devta baba ramdev ) के गुरु का प्रारंभिक जीवन काल जैसलमेर जिले के पोकरण में बीता था। लोक देवता बाबा रामदेव की बहन सुगणा के विवाह में पोकरण भेंट किया गया था। सुगणा का पुत्र चंचल व शरारती था। उसने बाबा रामदेव के गुरू बालीनाथ ( guru balinath ) के धूणे में मरा हुआ हिरण डाल दिया जिससे वे नाराज हो गए। इसके बाद बालीनाथ ने जोधपुर कूच कर मसूरिया में धूणा स्थापित किया। बाबा रामदेव ने जोधपुर पहुंचकर उनसे कई बार क्षमा मांगी लेकिन बालीनाथ नहीं माने और मसूरिया में ही धूणा स्थापित किया।
ऐसी लोक मान्यता है कि जैसलमेर जिले में स्थित बाबा रामदेव के समाधि स्थल पर शीश नवाने से पूर्व मसूरिया स्थित बाबा रामदेव के गुरु की समाधि ( balinath temple ) पर शीश नवाने से ही भक्तों की मनोकामना पूरी होती है। जोधपुर में लोक देवता बाबा रामदेव में देवत्व उजागर करने वाले उनके गुरु बालीनाथ के जोधपुर मसूरिया स्थित प्राचीन समाधि मंदिर की दुर्गम पहाड़ी पर बालीनाथ के तप से आलोकित गुफा व ‘धूणे’ को जातरुओं के दर्शनार्थ खोला गया है। आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व से जुड़ी गुफा दशकों से फिसलन भरी दुर्गम पहाड़ी पर होने से जातरुओं के दर्शन के लिए प्रतिबंधित थी। लेकिन मंदिर ट्रस्ट की ओर से करीब पांच वर्ष के अथक प्रयास के बाद जातरुओं के लिए सुगम मार्ग का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया।
पिछम धरा के बादशाह, लीले रा अवतार, धवळी ध्वजा रा धणी, पीर पोकरण वालो.. राम रूणीचै वालो इत्यादि विशेषणों से अलंकृत बाबा रामदेव के अवतार दिवस ‘बाबा री बीज’ मनाने के लिए भी प्रदेश के कोने-कोने व पड़ौसी राज्य मध्यप्रदेश, गुजरात से सैकड़ों किमी पैदल सफर तय कर रामदेवरा रूणीचा धाम पहुंचे थे। जोधपुर शहर की सड़कों पर इन दिनों आस्था हिलोरे ले रही है। जहां देखो वहां बाबा के भक्तों का सैलाब ही नजर आ रहा है। बाबा के जातरुओं को न तन की चिंता है ना कोई सुविधाओं की चाह है। जहां जगह मिल रही है जातरू वही पर डेरा डाल रहे हैं।
तेज बरसात और जर्जर सड़कों के गढ्ढे और नुकीले पत्थर भी जातरुओं के कदमों को नहीं रोक पाते। प्रदेश के कोने—कोने सहित आस पड़ोस के राज्यों से आ रहे जातरुओं में बस एक ही धुन सवार है वह है रूणीचा में बाबा के दर्शन का। बाबा के जातरुओं की श्रद्धा भी नमन करने लायक है । कोई बाबा के दरबार पहुंचने के लिए नंगे पांव तो कोई साईकिल पर सवार होकर सैकड़ों किमी की दूरी तय कर पहुंच रहा है। जुगाड़ से भी पहुंचने वालों की संख्या कम नहीं है। जुगाड़ का सफर जानलेवा साबित होना जानने के बावजूद सब कुछ बाबा के भरोसे छोड़ दिया है।
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