चंद्रकला को देखकर लोग ये सोचते होंगे कि यह काम तो पुरुषों का है तो महिला क्यों कर रही हैं, लेकिन इसके पीछे का दर्द तो सिर्फ उस महिला को ही पता है जो ये काम कर रही है। आईये जानते हैं गांधीनगर रेलवे स्टेशन की एकमात्र महिला कुली के संघर्ष की कहानी के बारे में…
नहीं टेके गरीबी के सामने घुटने
कुली चंद्रकला योगी गंगापुर जिले के टोडाभीम क्षेत्र के निकटवर्ती गांव गुजरवाड़ा की रहने वाली है। उनके पति रामभरोसी बांदीकुई रेलवे स्टेशन पर कुली का काम करते थे, जिनका करीब 22 साल पहले शूगर की बीमारी के कारण निधन हो गया था। ऐसे में महिला के कंधों पर पूरे घर का भार आ गया था। पति के देहांत के बाद भी महिला ने गरीबी के सामने घुटने नहीं टेके और अपने तीन बच्चों को पालने के लिए कभी नरेगा में काम किया तो कभी देहाड़ी मजदूरी की। दो साल तक बांदीकुई में किया कुली का काम
चंद्रकला योगी ने बताया कि उनके तीन बच्चे है, जिनमें से दो लड़के है और एक लड़की है। पति के निधन से पहले ही सास-ससुर की भी मौत हो गई थी। ऐसे में घर में सिर्फ तीन बच्चों के अलावा मेरा कोई और सहारा भी नहीं था। करीब 10 साल तक मेहनत मजदूरी की, तब गांववालों की सलाह पर कुली की नौकरी करने का फैसला लिया। इसके बाद दो साल तक बांदीकुई में कुली का काम किया। लेकिन, जब कमाई नहीं हुई तो ट्रांसफर करवा लिया। अब करीब 11 साल से गांधी रेलवे स्टेशन पर काम कर रही हूं।
16 घंटे काम और कमाई मात्र 500 रुपए
उन्होंने अपने जीवन के अनुभव बताते हुए कहा कि सुबह 4 बजे उठने के साथ ही कुली का काम शुरू कर देती हूं और रात 11 बजे तक काम में लगी रहती हूं। लेकिन, रोजाना 16 घंटे काम करने के बाद भी मात्र 500 रुपए ही कमा पाती हूं। बच्चों की याद में कई बार उनकी आंखें नम हो जाती हैं लेकिन हौंसले इतने मजबूत कि वो आंसू पोछकर फिर काम पर लग जाती है।
महिला कुली का संदेश-कभी हिम्मत नहीं हारे नारी शक्ति
उन्होंने अपने साथी कुलियों की प्रशंसा करते हुए बताया कि यह पुरुष प्रधान पेशा है, लेकिन वे मेरा सहयोग करते हैं। गांधीनगर रेलवे स्टेशन अब बड़ा बन रहा है। अगर यहां दो चार और महिलाएं आ जाएं तो एक टीम बनाकर काम करेंगे। इसके अलावा वो कहती हैं कि महिलाओं को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, चाहे परिस्थितियां कितनी ही कठिन क्यों ना हों।