scriptकृष्ण बलराम खेलेंगे फूलों की होली, गौर पूर्णिमा पर होगा चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य | Krishna Balram will play Holi of flowers, Chaitanya Mahaprabhu will appear on Gaur Purnima | Patrika News
जयपुर

कृष्ण बलराम खेलेंगे फूलों की होली, गौर पूर्णिमा पर होगा चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य

कृष्ण बलराम मंदिर भी आध्यात्म के रंगों में रंग गया है। होली के त्यौहार का सीधा सम्बन्ध भगवान कृष्ण और ब्रज की किशोरी राधा रानी से है, ऐसा माना जाता है की श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी। कृष्ण सुन्दरता के प्रतीक हैं, रंगों के प्रतीक हैं और यह रंग ही हैं जो हमारे जीवन में नई ऊर्जा और स्फूर्ति लेकर आते हैं।

जयपुरMar 22, 2024 / 07:40 pm

Shipra Gupta

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कृष्ण बलराम मंदिर भी आध्यात्म के रंगों में रंग गया है। होली के त्यौहार का सीधा सम्बन्ध भगवान कृष्ण और ब्रज की किशोरी राधा रानी से है, ऐसा माना जाता है की श्री कृष्ण ने ग्वालों के संग मिलकर होली खेलने की प्रथा शुरू की थी। कृष्ण सुन्दरता के प्रतीक हैं, रंगों के प्रतीक हैं और यह रंग ही हैं जो हमारे जीवन में नई ऊर्जा और स्फूर्ति लेकर आते हैं।
कृष्ण बलराम मंदिर में भी इन दिनों आध्यात्मिक ऊर्जा का एक नया संचार हो रहा है। मंदिर के कृष्ण हॉल में 22 से 24 मार्च तक गौर कथा का आयोजन किया जाएगा। 25 मार्च की शाम को गौर पूर्णिमा का उत्सव बड़ी ही धूम धाम से मनाया जायेगा। इस महोत्सव के लिए मंदिर प्रबंधन की तरफ से विशेष तैयारियां की जा रही हैं। पूरे मंदिर को रंग बिरंगी रौशनी से सजाया गया है।
गौर पूर्णिमा पर कृष्ण बलराम मंदिर में भगवान का दिव्य अलौकिक पोशाक एवं फूल बंगले के साथ भव्य श्रृंगार किया जाएगा। मंदिर अध्यक्ष श्री अमितासन दास भगवान का दिव्य महाअभिषेक पंचगव्य, विभिन्न फलों के रस से एवं 108 कलशों के पवित्र जल के साथ करेंगे। भगवान् को 56 भोग लगाया जायेगा। सबसे ख़ास बात ये है की गौर पूर्णिमा पर श्री श्री कृष्ण बलराम पालकी उत्सव में भक्तों के साथ फूलों की होली खेलेंगे और भक्त हरी नाम संकीर्तन पर झूमेंगे।
अध्यक्ष अमितासन दास ने गौर पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा की यह उत्सव चैतन्य महाप्रभु का प्राकट्य दिवस है, उनके सुनहरे रंग के कारण उन्हें गौरंग महाप्रभु भी कहा जाता है। उनके माता-पिता ने उनका नाम निमाई रखा क्योंकि उनका जन्म उनके पैतृक घर के आंगन में एक नीम के पेड़ के नीचे हुआ था। यह त्योहार गौड़ीय वैष्णवों के लिए नए साल की शुरुआत का भी प्रतीक है।

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