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जयपुर

किस्सा किले का: राजस्थान का वो दुर्ग, जिस पर नहीं होता था तोप के गोलों का असर

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जयपुरJun 29, 2018 / 05:26 pm

Nidhi Mishra

kissa kile ka- Nagaur Ahichhatragadh fort history in Hindi

kissa kile ka- Nagaur Ahichhatragadh fort history in Hindi

नागौर/जयपुर। राजस्थान के नागौर का किला एकमात्र ऐसा किला है, जिस पर दागे गए तोप के गोले किले को क्षति पहुंचाएं बिना ऊपर से निकल जाते हैं। यह राजस्थान का सबसे अच्छा सपाट भूमि पर बना किला है। अपनी ऊंची दीवारों और विशाल परिसर के लिए प्रसिद्ध है। ये किला नागौर शहर में स्थित एक प्रमुख और आकर्षक पर्यटन स्थल है। यह एक सुंदर रेतीला गढ़ है, जिसे चौथी सदी में बनाया गया था।

प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाए किलों में से है एक
नाग वंशियों द्वारा निर्मित नागौर दुर्ग महाभारत कालीन अन्य बहुत से दुर्गों की भांति मिट्टी से बना था। तिथियां बदलती रही और यह भी काल के थपेड़ों को सहन करता हुआ बदलता रहा। आज नागौर दुर्ग का जो वर्तमान स्वरूप दिखाई देता है वह राजाधिराज बख्तसिंह के समय का प्रतीत होता है। जिसमें कुछ संरचनाएं अत्यंत पुरानी ओर कुछ उसके बाद की है। बताया जाता है कि 16वीं शताब्दी में किले का पत्थर से निर्माण शुरू हुआ। मिट्टी का बना था किला नागौर दुर्ग भारत के प्राचीन क्षत्रियों द्वारा बनाए गए दुर्गों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि इस दुर्ग के मूल निर्माता नाग क्षत्रिय थे। नाग जाति महाभारत काल से भी कई हजार साल पुरानी थी। यह आर्यों की एक शाखा थी तथा इक्ष्वाकु वंश से किसी समय अलग हुई।

महाभारत काल में हुआ विराट संघर्ष
महाभारत काल में नागौर तथा पूर्व वंशजों के बीच राजनीतिक सत्ता को लेकर विराट संघर्ष हुआ, जिसके चलते बहुत से लोग नागों को औरों से अलग जाति मानने लगे। महाभारत काल के जन्मेजय यज्ञ के बाद ही नागों की बहुत क्षति हुई किंतु कालांतर में नागों का एक बार फिर से अभ्युदय हुआ, जो मगध के गुप्त वंश के उदय होने तक चलता रहा। गुप्तों ने नागौर को अपने अधीन कर लिया। इसके बाद नाग छोटे-छोटे राजाओं के रूप में राज्य करने लगे। वर्तमान नागौर भी उन्हीं नागौर की एक राजधानी थी। उन्होंने ही यह नाथ दुर्ग बनाया जो अहिछत्रगढ़ तथा नागौर किले के नाम से विख्यात हुआ।

कई युद्धों का है गवाह
नागौर का किला वीरवर राव अमरसिंह राठौड़ के नाम से प्रसिद्ध है। कई युद्धों का गवाह यह किला बीते युग में लड़े गए कई युद्धों का गवाह है। यह राजस्थान का सबसे अच्छा सपाट भूमि पर बना किला है अपनी ऊंची दीवारों और विशाल परिसर के लिए प्रसिद्ध है। पर्यटक किले के अंदर आकर कई महलों, फव्वारे, मंदिरों और खूबसूरत बगीचों को देख सकते हैं। इस किले का निर्माण नागावंशियों के द्वारा किया गया था और बाद में किले को मोहम्मद बहलीन द्वारा पुनर्निर्मित करवाया गया।

दुश्मनों की पहुंच से दूर
किले के छह मुख्य प्रवेश द्वार हैं, पहला प्रवेश द्वार लोहे और लकड़ी के नुकीले कीलों से मिलकर बना है जो दुश्मनों और हाथियों के हमलों से रक्षा करने के उद्देश्य से बनाया गया था। दूसरा प्रवेश द्वार बिचली पोल है तीसरा कचहरी पोल, चौथा सूरज पोल, पांचवां धुरती पोल, छठा राज पोल है। आखिरी दरवाजे को प्राचीन काल में नागौर की न्यायपालिका के रूप में इस्तेमाल किया जाता था। इसके अलावा यहां राजा का दीवान ए आम में दरबार लगता था, जहां राजा लोगों की समस्याएं सुनते थे।

संजोए रखा गौरवशाली इतिहास
नागौर की सुंदरता यहां के पुराने किलों व छतरियों में है, जिसका उत्कृष्ट उदाहरण हमें नागौर में प्रवेश करते ही देखने को मिलता है। इस नगरी में प्रवेश करने के लिए तीन मुख्य द्वार है, जिनके नाम देहली द्वार, त्रिपोलिया द्वार तथा नकाश द्वार है। किले के भीतर भी छोटे-बड़े सुंदर महल व छतरियां हैं, जो हमें राजस्थान के गौरवशाली इतिहास में खीच ले जाते हैं।

संरक्षित है सैनिकों की यादें
किले के भीतर चार सुंदर पैलेस हाड़ी रानी महल, अकबरी महल, आभा महल व बख्तसिंह पैलस हैं, जो अपने सुंदर भित्ति चित्रों व स्थापत्य कला के कारण प्रसिद्ध हैं। इनके समीप ही एक शाहजहांनी मस्जिद है, जिसे मुगल शासक शाहजहां के समय में बनाया गया। इसके अलावा कुछ मजारें भी बनी हुई हैं। इसी के साथ ही किले के भीतर राजपूताना शैली में बनी हुई सैनिकों की सुंदर छतरियां भी हैं। किले में राधा कृष्ण, आराध्य देव गणेश, भैरवजी व नाहर माताजी का मंदिर है। गणेश मंदिर में हर बुधवार भक्तों की भीड़ रहती है। बड़ी तीज पर किले में राधा कृष्ण मंदिर में मेला भरता है व किले का शृंगार किया जाता है। राधा कृष्ण मंदिर के सामने विशाल मैदान में दरबार की ओर से खेलों व प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था। यहां हाथियों को रखा जाता था।

विश्व भर में प्रसिद्ध है किला
नागौर किलों और महलों के कारण सदा से ही पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र रहा है। नागौर का किला दूर-दूर तक फैली रेत के बीच एक प्रकाश स्तंभ की तरह दिखाई देता है। चौथी शताब्दी में अस्तित्व में आया यह किला राजस्थान के अन्य किलों की तरह ही ऊंचाई पर स्थित है। यूनेस्को ने अहिछत्रगढ़ दुर्ग या नागौर किले को 2002 में एशिया पेसिफिक हेरिटेज अवार्ड (अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस) पुरस्कार से नवाजा है। पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा नागौर किलों व महलों के रूप में नायाब खूबसूरती को समेटे हुए है। किले में तीन बारादरी स्थित है, जहां राज परिवार के लिए मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे।

जल प्रबंधन कमाल का
नागौर का किला जल संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण है। बरसों पहले भी पूरे किले के पानी को एक स्थान पर संग्रहित कर रखे जाने की व्यवस्था थी। किले की मोटी-मोटी प्राचीरों के ऊपर इस प्रकार नालियों का निर्माण किया गया था कि सारा पानी बहकर एक के बाद एक कुएंनुमा खड्ढों से होता हुआ बावड़ियों में पहुंच जाता था। पूरे महल में जल प्रबंधन इस प्रकार था कि फाउण्टेन भी पानी से एक्टिवेट होतेे और उनका पानी भी बहकर वापस बावड़ियों में चला जाता। इसी प्रकार महल के विभिन्न भागों में पानी की आपूर्ति भी इन्हीं बावड़ियों से होती थी। निकटवर्ती चेनार गांव के शक्कर तालाब से पत्थर की नालियों से किले में पीने का पानी पहुंचाया जाता था। इसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।

अकबर की खिदमत में बनाया महल अकबरी महल
अकबर के नागौर प्रवास के दौरान किले में उनके लिए एक महल का निर्माण करवाया गया, जिसे अकबरी महल भी कहा जाता है।
हमाम- इसके अलावा महल में रानियों के लिए विशाल स्नानागार व उनमें भित्तिचित्र भी देखते ही बनते हैं।
दीपक महल- राजा महाराजा के समय में होने वाले आयोजनों में रोशनी की व्यवस्था के लिए सैकड़ों दीपक जलाए जाते थे। दीपक जलाए जाने के सूबत आज भी महल में मौजूद है।

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