पुरानी राजधानी आमेर की टकसाल बंद होने के बाद सवाई जयसिंह ने जयपुर के सिरह ड्योड़ी बाजार में रामप्रकाश सिनेमा के सामने चांदी-सोने की मुद्रा ढालने के लिए टकसाल की इमारत बनवाई। इस टकसाल में सिक्के ढालने का काम शुरू किया, उससे पहले प्रकांड विद्वानों ने धन की देवी महालक्ष्मी जी का अनुष्ठान किया था। जयपुर फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष सियाशरण लश्करी ने बताया कि आमेर के बाद जब 1727 में जयपुर की स्थापना की गई, तब महालक्ष्मी की मूर्ति को टकसाल में स्थापित किया गया। इससे पहले यह टकसाल आमेर में हुआ करती थी। जयपुर स्थापना के साथ ही चांदी की टकसाल में महालक्ष्मी की मूर्ति विराजित की गई। उस समय सोने, चांदी और तांबे के सिक्के टकसाल में बनते थे, इनमें पहला सिक्का माता को चढ़ाया जाता था।
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पहला सिक्का माता को अर्पित
मंदिर पुजारी विक्रम कुमार शर्मा ने बताया कि जब से जयपुर रियासत बसी है, तब से यह मंदिर है। इस मंदिर की खासबात यह है कि जयपुर रियासत के लिए टकसाल में सिक्कों का निर्माण होता था, तब पहला सिक्का माता को अर्पित किया जाता था, उसके बाद ही सिक्कों को राजकोष में जमा किया जाता था। यह मंदिर जयपुर रियासत के समय का बना हुआ है, शुरू में यह मंदिर तत्कालीन राजपरिवार के लिए खुलता था, शुरू में इस मंदिर में आम जनता का प्रवेश नहीं होता था। यहां पर बहुत सख्त पहरा हुआ करता था।