शास्त्रों के अनुसार
राजस्थान में चार और देश के दस राज्यों में 40 से अधिक पितृ तीर्थ हैं, जहां कि तर्पण- श्राद्ध की हरिद्वार, प्रयागराज और गया में अनुष्ठान के बराबर ही मान्यता है। इनमें पुष्कर स्थित ‘
गया कुंड‘ में भगवान राम ने पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। ‘ ब्रह्म कपाल’ (बद्रीनाथ) में ब्रह्मा जी के पिंडदान और तर्पण के बाद भगवान शिव को ब्राह्मण हत्या के कलंक से मुक्ति मिली थी।
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18 वीं शताब्दी में बने गलता तीर्थ में प्रतिदिन बड़ी संख्या में तर्पण के लिए लोग पहुंच रहे हैं।
झुंझुनू स्थित लोहार्गल धाम का जुड़ाव ब्रह्माजी से है। ऐसी मान्यता है कि इस स्थान की रक्षा स्वयं ब्रह्मा ही करते हैं। यहां शिव तथा सूर्य मंदिर के बीच स्थित सूरजकुंड में पांडवों ने पितरों के लिए मुक्ति कार्य करवाया था। शास्त्री के अनुसार यहां स्थित कुंड के पानी में पांडवों के अस्त्र-शस्त्र गल गए थे, इसलिए इस जगह का नाम लोहार्गल पड़ा।
टॉपिक एक्सपर्ट
पंच पुराण के अनुसार भगवान राम ने 14 साल के वनवास के दौरान पुष्कर (गया कुंड) में पिता दशरथ का श्राद्ध किया था। मान्यता है कि पुष्कर तीर्थ में पितृ कर्म से पूर्वजों की आत्मशांति मिलती है। डूंगरपुर का बेणेश्वर धाम सोम और माही नदियों के संगम पर स्थित है। वागड़ क्षेत्र की गंगा कहा जाने वाला यह स्थान भी अस्थि विसर्जन और पितृ तर्पण की दृष्टि से पवित्र माना जाता है। पंच पुराण के मुताबिक गया (बिहार) के बाद बद्रीनाथ में अलकनंदा नदी, तृप्त कुंड के पास स्थित ‘ब्रह्म कपाल नामक स्थान तर्पण, पिंडदान के लिए सबसे उत्तम माना गया है।