जयपुर। शहर की गलता घाटी (galata ghati) में स्थित घाट के बालाजी (ghat ke balaji) कुलदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। जयपुर के राजा-महाराजाओं के भी बालाजी महाराज कुलदेवता रहे हैं। पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह (Former Maharaja Sawai Jai Singh) का चोटी संस्कार भी घाट के बालाजी के ही हुआ है, इसका रिकॉर्ड आज भी बीकानेर के अभिलेखागार में मौजूद हैं। अभिलेखागार में राजा-महाराजाओं की ओर से बालाजी के चढ़ाई गई भेंट आदि भी मौजूद हैं। परकोटे में रहने वाले जयपुरवासियों के जात-जडुले आज भी यहीं उतरते हैं।
मान्यता है कि हनुमानजी महाराज प्रात:काल डिग्गी कल्याणजी, दोपहर में घाट के बालाजी और शयन के दौरान चांदपोल हनुमानजी के साक्षात रूप में दर्शन देते हैं। गलता रोड पर स्थित घाट के बालाजी स्वयंभू हैं, उनकी मूर्ति शिलारूप में दक्षिणमुखी स्वयं ही प्रकट हुई है। यह मूर्ति आज भी जागती ज्योत के रूप में विराजमान है। बालाजी महाराज दक्षिणमुखी है, जो दोपहर में साक्षात रूप में दर्शन देते हैं। बालाजी महाराज जयपुरवासियों के ही कुल देवता नहीं हैं, पूर्व राजा-महाराजाओं की भी आस्था के केन्द्र रहे हैं। राजा-महाराजा गलता स्नान के बाद मंदिर में दर्शनों के लिए आते थे, उस समय हर मंगलवार और शनिवार को हनुमानजी महाराज के सवामण चूरमे का भोग लगता था, यह परंपरा आज भी जिंदा हैं। मंदिर में आज भी मंगलवार व शनिवार को चूरमे का भोग लगता है। मंदिर में हर मंगलवार व शनिवार को चूरमा-बाटी बनती है।
1965 में शुरू हुआ यहां पौष बड़ा का आयोजन
बालाजी महाराज के वार-त्योहार की बात करें तो बालाजी मंदिर में वर्ष 1965 में पौष माह में पौष बड़ा प्रसादी का आयोजन हुआ, जो बाद में चलकर लक्खी पौष बड़ा महोत्सव में बदला। यह परंपरा धीरे-धीरे पूरे शहर में फैली, आज शहर के हर मंदिर में पौष बड़ा प्रसादी का आयोजन होने लगा है। वहीं अन्नकूट महोत्सव के साथ रूप चौदस को मंदिर में विशेष आयोजन होते हैं, इस दिन हनुमानजी महाराज का जन्मदिन मनाया जाता है। भाद्रपद में 6 कोसी व 12 कोसी परिक्रमा आती है, जो अभी भी आ रही है। शहर में निकलने वाली प्राचीन मंदिरों की परिक्रमा का विश्राम स्थल भी बालाजी मंदिर ही है।
दक्षिणशैली में बना है शिव-पंच गणेशजी मंदिर
घाट के बालाजी के गर्भ गृह के दाहिने हाथ पर कुछ ऊंचाई पर शिवजी व पंच गणेशजी विराजमान है। यह मंदिर दक्षिणी शैली में बना हुआ है। यहां पहले लक्ष्मीनारायणजी का मंदिर था। बाद में लक्ष्मीनारायणजी की मूर्ति को जामड़ोली में विराजमान किया गया। इसके बाद यहां शिवजी की प्राण प्रतिष्ठा करवाई गई। वहीं बाहर पंच गणेशजी विराजमान है। पंच गणेश की मूर्तियां चालीस वर्ष पहले मंदिर के सफाई अभियान के दौरान निकली थी। काले पत्थर में बनी पंच गणेश की मूर्तियों के पास महिषासुर मर्दिनी व उसके पास के शिव मंदिर चूने से ढका हुआ था। चूना हटाने में एक वर्ष का समय लगा था। चूना हटाने के बाद मंदिर का शिल्प और मूर्तियां दिखाई देने लगी थी।