scriptसिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर | In the race of cinema, we have forgotten the power of theatre: Amol P | Patrika News
जयपुर

सिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर

-राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में वीकेंड थियेटर के शुभारंभ पर वेटरन एक्टर-निर्देशक ने रंगमंच पर की चर्चा, बोले अब मैं पार्ट टाइम एक्टर और फुल टाइम पेंटर बनकर काम कर रहा हूं

जयपुरJul 08, 2023 / 12:23 am

Mohmad Imran

सिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर

सिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर

जयपुर। थियेटर दो जिंदा लोगों के बीच गुफ्तगू का जरिया है। यह वह कला है जो हमें एक संवाद से कल्पना के उस आसमान पर ले जाती है, जहां हकीकत का पंछी भी नहीं पहुंच पाता। कुछ इसी रूमानियत के साथ राजस्थान इंटरनेशनल सेंटर में वेटरन एक्टर, निर्देशक और रंगकर्मी अमोल पालेकर ने तीन दिवसीय नाट्य समारोह ‘वीकेंड थियेटर’ फेस्टिवल की शुरुआत की। पहले दिन नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) में तैयार नाटक ‘लैला मजनूं’ का मंचन हुआ। उससे पहले अमोल अपने चाहने वालों मुखातिब हुए और थियेटर, सिनेमा और वर्तमान में इनकी दशा एवं दिशा पर चर्चा की। उन्होंने ऑडियंस के सवालों के जवाब भी दिए।

सिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर

हम सिनेमा, क्रिकेट और पॉलिटिक्स की गिरफ्त में

अमोल ने कहा, ‘मैं हमेशा कहता हूं कि सिनेमा, क्रिकेट और पॉलिटिक्स, इन तीनों ने हमारी जिंदगी पर काबू कर लिया है। हालांकि, थियेटर की जगह इनमें से कोई नहीं ले सकता। रंगमंच में इतनी ताकत है कि चंद शब्द में हमें वह सोचने पर मजबूर कर देता है, जो हमने मंच पर देखा तक नहीं है। सिनेमा में धन और तकनीक की कमी नहीं है, लेकिन ‘बाहुबली’ और ‘आरआरआर’ जैसी फिल्मों के वैभव को रंगमंच पर महज कुछ शब्दों से महसूस कराया जा सकता है। हमारी आंखें लाइव थियेटर परफॉर्मेंस में जो अनुभव करती हैं, वह सिनेमा में नजर नहीं आ सकता।

सिनेमा की होड़ में हमने थियेटर की ताकत को भुला दिया है: अमोल पालेकर

थियेटर एक बहुत ही सक्षम और ताकतवर मीडियम है

मैं यह भी मानता हूं कि हम लोग सिनेमा से कम्पीट करने के फेर में रंगमंच की इस ताकत को भूल गए हैं। हम जो कल्पना करते हैं, उन्हें थियेटर के मंच पर ला नहीं पाते, क्योंकि बहुत-सी दुश्वारियां हैं। मैंने अपना सफर एक पेंटर के रूप में शुरू किया। आज मैं एक फुल टाइम पेंटर बनकर बहुत खुश और गर्वित महसूस करता हूं, एक्टिंग कभी-कभार कर लेता हूं। एक पेंटर के तौर पर मैं कैनवास के शून्य को भरता हूं। ऐसे ही एक कलाकार भी मंच पर अपनी एक्टिंग, आवाज और हाव-भाव से मंच पर उस खाली स्पेस को भरने का काम करता है, जो हम सब महसूस करते हैं। एक कलाकार अपने हुनर से लोगों को हंसने, रोने, विद्रोह करने, सोचने, क्रोधित होने और बदलाव लाने की ताकत रखता है। इसे समझने के बाद मेरा थियेटर के प्रति लगाव और बढ़ गया।

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