जबकि, रिन्यूएबल एनर्जी पॉलिसी में प्रावधान है कि
राजस्थान में प्लांट लगाने वाली कंपनियां कुल उत्पादित बिजली का 7 प्रतिशत हिस्सा डिस्कॉम्स को देंगी या फिर उससे 50 हजार रुपए प्रति मेगावाट रिन्यूएबल एनर्जी डवलपमेंट फेसिलिटेशन चार्ज लेंगे। गंभीर यह है कि अभी तक एक यूनिट सस्ती बिजली राज्य को नहीं मिली। सरकार भी फेसिलिटेशन चार्ज लेकर तिजोरी भरने में तल्लीन है। इस फंड के जरिए हर साल करीब 200 करोड़ रुपए आ रहा है।
हमें भी सस्ती बिजली मिले तो 5 बड़े फायदे
1- कोयला स्टॉक की समस्या खत्म हो: बिजलीघरों में न्यूनतम 21 दिन का कोयला होना जरूरी है, लेकिन अधिकतम 5 से 9 दिन का ही कोयला रहता है। संकट के दौरान तो 2 से 3 दिन का ही रह गया था। 2- महंगा कोयला नहीं खरीदना पड़े: कोयला संकट की आड़ में विदेशों से महंगा कोयला खरीदा जा रहा है। अब तक दो बार में करीब 1500 करोड़ रुपए का कोयला खरीदा गया। 3- बिजली कटौती की नौबत कम आएगी: बिजली की डिमांड बढ़ने पर 1500 से 2500 मेगावाट तक बिजली की कमी रहती है। इसकी पूर्ति के लिए या तो बाजार से महंगी बिजली खरीदते हैं या फिर विद्युत कटौती की जाती रही है।
4- महंगी बिजली खरीद की जरूरत कम होगी: अभी एक्सचेंज से 10 रुपए यूनिट तक महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है। 5- फ्यूल सरचार्ज का बोझ से छुटकारा: महंगा कोयला खरीद, परिवहन लागत बढ़ने की आड़ में फ्यूल सरचार्ज वसूल रहे हैं। इसकी स्थिति कम बनेगी।
इस तरह दिक्कत
-देश में सबसे ज्यादा रेडिएशन (सौर ऊर्जा) राजस्थान में है। यहां प्रति वर्गमीटर एरिया से हर साल 5.72 यूनिट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है। जबकि, गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक सहित अन्य राज्य हमसे काफी पीछे हैं।
-इसी कारण बड़ी कंपनियां राजस्थान में सोलर पार्क लगाने के लिए निवेश कर रही हैं। सरकार भी इन्हें जमीन आवंटित कर रही है, लेकिन यहां उत्पादित सौर ऊर्जा का बड़ा हिस्सा दूसरे राज्यों में सप्लाई किया जा रहा है।
-विषय विशेषज्ञों के मुताबिक ऐसे ही चलता रहा तो सौर ऊर्जा उत्पादन में सिरमौर राजस्थान के उपभोक्ताओं के लिए ही सस्ती बिजली नहीं बचेगी। इसके लिए राजस्थान का हिस्सा तय हो तो बात बने।
प्राकृतिक ऊर्जा के प्लांट की क्षमता
-24 हजार मेगावाट क्षमता के सोलर प्लांट -5200 मेगावाट क्षमता के विंड एनर्जी प्लांट -128 मेगावाट के बायोमॉस प्रोजेक्ट -24 मेगावाट का स्मॉल हाइड्रो