प्रसिद्ध थी अटल, आडवाणी और भैंरो सिंह की दोस्ती
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ( Former PM Atal Bihari Vajpayee ) , बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ( Lalkrishna Advani ) और पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरो सिंह के बीच सियासत से इतर दोस्ती थी। खास बात ये है कि तीनों के इस रिश्ते का अध्याय भी राजस्थान से ही शुरू हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी का राजस्थान से सियासी ही नहीं, बल्कि भावनाओं का रिश्ता भी था। वह भैंरो सिंह शेखावत की बेटी की शादी में जब कन्यादान करने राजस्थान आये थे तब इस रिश्ते की हकीकत को लोगों ने सियासत से परे जाकर समझा। अटल, आडवाणी और भैंरो सिंह के संयुक्त दुर्लभ चित्रों से सुसज्जित पहला फोटो राजस्थान में ही खींचा गया था।
सती प्रथा के विरोध में उतरे ( sati pratha in hindi )
राजस्थान में जब रूप कंवर सती कांड सामने आया तो पूरा राजपूत समाज सती प्रथा की हिमायत में खड़ा हो गया था, लेकिन बाबोसा इसके विरोध में उतर आए। इस पर राजपूत समाज का एक बड़ा हिस्सा उनके विरोध में खड़ा हो गया, लेकिन ये विरोध उनको विचलित नहीं कर सका। ऐसे समय जब कोई नेता अपनी जाति या खाप की पंचायत के आगे खड़े होने की हिम्मत नहीं करता, ये शेखावत ही थे जो डटकर अपनी बात पर अड़े रहे।
मुसलमान उनको एक धर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे
राममंदिर के निर्माण और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लम्हों में कभी उन्हें वैसी उन्मादी बातें करते नहीं देखा जैसे उनकी पार्टी के लोग कर रहे थे। बल्कि जब उनके दो मंत्रियो ने अयोध्या में कार सेवा में शिरकत की ज़िद की तो शेखावत ने उन दोनों को अपने मंत्रिमंडल से मुक्ति दे दी। मुसलमान उनको एक धर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे। मुख्यमंत्री के नाते उन्होंने अन्त्योदय जैसे कार्यक्रम शुरु किए और ग़रीब को गणेश मानने जैसे नारों को अपनी सरकार का ध्येय वाक्य बनाया।
गंभीर राजनीति हो या तनाव के लम्हे, शेखावत हास्य के क्षण ढूंढ लेते थे। उनके दोस्त सभी दलों में थे, शायद सभी दिलो में भी। उनके मुख्यमंत्री रहते एक बुज़ुर्ग वामपंथी नेता जब अनशन पर बैठे और तीन दिन हो गए तो शेखावत ने अपने गृह मंत्री को भेजा और कहा कि उन्हें मनाकर अनशन से उठाओ। उन्होंने राजनीतिक मतभेदों को कभी अपने मानवीय दृष्टिकोण पर हावी नहीं होने दिया।