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Rajasthan News : वन विभाग सख्त, डीएफओ की NOC के बिना नहीं कर सकेंगे होटल, रिसॉर्ट, अन्य प्रोजेक्ट स्वीकृत

Jaipur News : प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर व लेपर्ड रिजर्व, अभयारण्य, वन भूमि, ईको सेंसिटिव जोन व उसके आसपास क्षेत्र को संरक्षित रखने की बजाय राजस्व विभाग और नगरीय निकाय वहां निजी प्रोजेक्ट्स के लिए भू – उपयोग परिवर्तन कर रहे हैं।

जयपुरJul 18, 2024 / 09:23 am

Supriya Rani

जयपुर. प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यान, टाइगर व लेपर्ड रिजर्व, अभयारण्य, वन भूमि, ईको सेंसिटिव जोन व उसके आसपास क्षेत्र को संरक्षित रखने की बजाय राजस्व विभाग और नगरीय निकाय वहां निजी प्रोजेक्ट्स के लिए भू – उपयोग परिवर्तन कर रहे हैं। वन विभाग ने इस पर आपत्ति जताते हुए कलक्टर, राजस्व विभाग, विकास प्राधिकरण, नगर विकास न्यास और नगरीय निकायों को निर्देश दिए हैं कि भविष्य में ऐसे रिजर्व एरिया में किसी भी प्रोजेक्ट को स्वीकृति, भू – उपयोग परिवर्तन करने से पहले संबंधित उप वन संरक्षक से अनिवार्य रूप से एनओसी लेनी होगी। वन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव अर्पणा अरोड़ा के इस आदेश से उन होटल, रिसोर्ट संचालकों व अन्य गतिविधि संचालित करने वालों में खलबली मच गई है, जो अभी तक प्रतिबंधित क्षेत्र में चल रहे है। साथ ही नए प्रोजेक्ट शुरू करने वाले भी विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
हालांकि, अरोड़ा ने पूर्व में जारी आदेशों को ही दोबारा प्रसारित किए हैं और उस आधार पर पालना सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं। इसमें ऐसे इलाकों को संरक्षित रखने से जुड़े प्रावधान हैं। बताया जा रहा है कि राजधानी जयपुर, सवाईमाधोपुर, कुंभलगढ़ सहित कई जगह तेजी से भूउपयोग परिवर्तन किए जा रहे हैं, जिससे रिजर्व एरिया के प्रभावित होने का खतरा मंडरा रहा है।

इस तरह है रोक

पर्यावरण, वन एवं जलवायु मंत्रालय के रक्षित क्षेत्र के ईको सेंसिटिव जोन के भीतर और बाहर प्रोजेक्टस व अन्य गतिविधियों के लिए पर्यावरण स्वीकृति, वन्यजीव स्वीकृति के संबंध में सख्ती से पालना करनी होगी।
अधिसूचित राष्ट्रीय उद्यान, वन्यजीव अभयारण्य, रक्षित वन क्षेत्र की सीमा से एक किलोमीटर या ईको सेंसिटिव जोन जो भी अधिक हो, वहां औद्योगिक व व्यावसायिक गतिविधियां बंद है।

जिन राष्ट्रीय उद्यान या वन्यजीव अभयारणय के लिए ईको सेंसिटिव जोन अधिसूचित नहीं है, वहां सीमा 10 किलोमीटर तक रखने के निर्देश हैं। वहां किसी भी तरह की गतविविधि की अनुमति नहीं है।
रणथम्भौर, सरिस्का टाइगर रिजर्व, जवाई लेपर्ड रिजर्व व कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य के एक किलोमीटर की परिधि में व्यावसायिक, औद्योगिक गतिविधियां प्रतिबंधित हैं। यहां एक किलोमीटर की सीमा का भू-सम्परिवर्तन नहीं किया जा सकता है।

एसी कमरों में बैठकर निकालते रहे आदेश, अब भी चल रहे होटल-रिसॉर्ट…

सवाल यह उठ रहा कि इस तरह के आदेश विभाग पहले भी जारी कर पालना करने के निर्देश देता रहा है। इसके बावजूद संरक्षित और उससे सटे प्रतिबंधित क्षेत्र में अब भी होटल, रिसॉर्ट व अन्य गतिविधियां कैसे संचालित हो रही हैं। उन्हें बंद करने के लिए अफसरों ने बहुत ज्यादा प्रभावी एक्शन क्यों नहीं लिया। अब उन्हें हटाने के लिए क्या किया जा रहा है। उन अफसरों के कार्यशैली पर सवालों के कठघरे में हैं, जो एयरकंडीशन कमरों में बैठकर कागजी आदेश जारी करते रहे हैं। मौके पर पालना और एक्शन हो रहा है या नहीं, इससे उन्हें कोई सरोकार नहीं है।

पत्रिका के अभियान के बाद चेते…एनजीटी में सुनवाई 8 को

राजस्थान पत्रिका ने सरिस्का के आसपास सरकारी जमीन पर चल रही कॉमर्शियल गतिविधियों का मुद्दा उठाया था। 23 मई से यह अभियान लगातार जारी है। यह प्रकरण एनजीटी में दायर हुआ। राजेंद्र तिवारी केस पर एनजीटी ने प्रशासन को आदेश दिए कि सीटीएच की 54 हजार हैक्टेयर जमीन सरिस्का के नाम की जाए। साथ ही सीटीएच व बफर क्षेत्र में कॉमर्शियल गतिविधियों के संचालन न होने के भी आदेश दिए। अगली सुनवाई 8 अगस्त को है। एनजीटी के दबाव के चलते सरकार फिर से जागी। सुनवाई से पहले अतिरिक्त शासन सचिव (एसीएस) वन अपर्णा अरोड़ा ने कॉमर्शियल गतिविधियों के संचालन न होने के आदेश जारी कर दिए।

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