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जयपुर

भ्रूण को ऐसा दर्जा दिया, जिससे छिड़ गई नई बहस

-अदालत ने दी वादी बनाने की अनुमति

जयपुरMar 23, 2019 / 08:08 pm

pushpesh

अदालत ने दी वादी बनाने की अनुमति

भ्रूण को ऐसा दर्जा दिया, जिससे छिड़ गई नई बहस

जयपुर.

अलबामा में एक व्यक्ति ने गर्भस्थ शिशु की ओर से मुकदमा दायर करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया है। मुकदमा उस दवा निर्माता कंपनी के खिलाफ, जिसकी दवा का इस्तेमाल कर उसकी प्रेमिका ने छह सप्ताह के शिशु को गर्भ में ही खत्म कर दिया। ये दवा क्लीनिक में उसे दी गई थी। मेडिसन काउंटी के जज फ्रेंक बर्जर इस मौत के लिए बेबी रो (गर्भस्थ भू्रण) को एक व्यक्ति मानकर वादी रयान मैगर्स को इसे सहवादी बनाए जाने की अनुमति देकर गर्भस्थ भ्रूण के कानूनी अधिकारों को मान्यता दे दी है। याचिका में मैगर्स ने बताया कि २०१७ में उसकी प्रेमिका गर्भवती हो गई। उसने बच्चे को जन्म देने इच्छा जाहिर की, लेकिन प्रेमिका गर्भपात करवाना चाहती थी। गर्भपात अधिकारों के लडऩे वाले संगठनों ने जज के फैसले को गलत परंपरा की शुरुआत बताया। दरअसल भ्रूण और गर्भवती के अधिकारों को अलग करने जैसा विचार है। खास बात ये है कि गर्भपात कानून के लिए लडऩे वाले भले ही इस पर हाय तौबा करें, लेकिन अमरीका के दर्जनों राज्यों में भ्रूण हत्या कानून लागू है, जिसमें अजन्मे शिशु को गर्भवती से अलग वजूद देता है। उधर गर्भपात विरोधी संगठन की हना फोर्ड कहती हैं कि ‘बेबी रो’ को दुनिया में आने से पहले ही खत्म कर दिया गया। गर्भपात के अधिकारों का समर्थन करने वाले एलिजाबेथ नैश कहते हैं कि ये रूढि़वादी लोगों के विरोध का हिस्सा है। जिसे सही नहीं कहा जा सकता। अमरीकी संगठन के इलियास हॉग ने फैसले पर असंतोष जाहिर करते हुए ट्वीट किया कि भ्रूण को इस तरह की मान्यता देकर महिलाओं के अधिकार तीसरी पंक्ति में आ जाएंगे।
पहली बार अजन्मों के लिए विभाग
वेल्स सरकार ने सोफिया होवे को कमिश्नर बनाकर संवैधानिक शक्तियों के साथ अजन्मे शिशुओं के अधिकारों की रक्षा का दायित्व सौंपा है।

सविता ने बदलवाया आयरलैंड का कानून
आयरलैंड में कैथोलिक मान्यता के चलते गर्भपात की अनुमति नहीं थी। 28 अक्टूबर 2012 को भारतीय मूल की सविता हलप्पनवार की मौत के बाद आयरलैंड में कानून में बदलाव के लिए विरोध प्रदर्शन हुए। जनमत संग्रह के बाद आखिर कानून बदला गया। इसके मुताबिक यदि गर्भवती की जान को खतरा है, तो गर्भपात करवाया जा सकता है। सविता ने जान को खतरा बताते हुए गर्भपात की इजाजत मांगी थी, लेकिन यहां के कानून के चलते डॉक्टरों ने इसकी इजाजत नहीं दी और सविता की मौत हो गई।
भारत में भी भ्रूण के अधिकारों की बात उठी
मुंबई हाईकोर्ट ने पिछले वर्ष सितंबर में 18 वर्षीय एक बलात्कार पीडि़ता की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उसने 27 हफ्ते के भ्रूण को गिराने की अनुमति मांगी थी। खास बात ये है कि केस की सुनवाई करते हुए अदालत ने भ्रूण के अधिकारों की समीक्षा की बात कही। देश में पहली बार ये सवाल भी उठा कि क्या भ्रूण को व्यक्ति का दर्जा दिया जा सकता है? गर्भ में पल रहे एम्ब्रियो को आठ हफ्ते बाद यानी 57वें दिन से बच्चा पैदा होने तक कानून की नजर में वह ‘फीटस’ यानी ‘भ्रूण’ माना गया।

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