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जयपुर

मिर्चीबड़े के चटखारे, मावा कचौरी की मिठास…एेसे हैं इस शहर के नज़ारे

मिर्चीबड़े के चटखारे, मावा कचौरी की मिठास…एेसे हैं इस शहर के नज़ारे

जयपुरMay 08, 2018 / 08:49 am

rajesh walia

jodhpur sweet
जयपुर

जोधपुर शहर में एक से बढ़कर एक ऐसे जायकेदार पकवान मिलते हैं कि मुंह में पानी का सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं लेता। भले ही वो गुलाब-जामुन हो, देशी घी में बनी चक्की की मिठाई या फिर मावे की कचौडिय़ा सभी स्वाद में अनूठे हैं। एक बात और यहां की मिठास ही नहीं तीखा भी देश-विदेश के लोगों को खूब भाता है। जोधपुर के मिर्चीबड़े का नाम सुन-सुन कर हर कोई चटखारे लेने लगता है। जोधपुर को मिठाइयों का शहर कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। जोधपुर के खास गुलाब जामुन देश-विदेश तक जाते हैं। इस शहर ने सिर्फ यहां की मिठाइयों को ही विशेष पहचान नहीं दी, बल्कि दूसरे शहरों की मिठाइयों का भी जायका बदलकर उन्हें भी अपना बना लिया। भले ही कभी इन मिठाइयों का निर्माण देश के दूसरे शहरों में होता हो, लेकिन आज ये जोधपुर की खास मिठाइयों में शुमार होती है। इनके जायके को बदलकर जोधपुर ने इनके स्वाद में चार-चांद लगा दिए हैं। जिसका एक उदाहरण है पुुंगलपाडा के गुलाब जामुन, मंडोर की दिलखुशहाल और राखी हाउस की बेसन चक्की, काजू की कतली और सोहन पापड़ी इत्यादि।
पूरे एशिया में घी की सबसे ज्यादा खपत जोधपुर में

खाने-पीने में मशहूर सूर्यनगरी रिकॉर्ड तोड़ घी का सेवन करती है। एशिया में सर्वाधिक घी जोधपुर में बिकता है। इसलिए यहां घी की मंडी भी है। व्यापारियों के अनुमान के मुताबिक जोधपुर में रोज 40 हजार किलो घी बिक जाता है। जिसमें 2500 से 3 हजार टिन हर रोज बिक जाते हैं। हाल यह है कि यहां लोग घी की मिठाइयां, सब्जियां और बने नमकीन का जमकर सेवन करते हैं। मिष्ठान-भंडारों पर कार्यरत कंदोइयों का पैकेज भी सालाना पौने दो लाख रुपए से ढाई लाख रुपए के पार है। उनका मेहनताना प्रतिमाह 15 हजार से लेकर 20 हजार रुपए से भी ज्यादा है। मिष्ठान भंडारों पर कार्यरत कंदोई को खाना-पीना और रहने की जगह देने की जिम्मेवारी भी मिष्ठान संचालकों की रहती है। ज्यादातर कंदोई जोधपुर जिले के होते हैं। बड़ी बात यह है कि यहां मिठाइयों का स्वाद भी मिष्ठान संचालकों के आइडिए पर निर्भर रहता है। ऐसे में कंदोई के छोड़ जाने के बाद भी शहर की विशेष दुकानों पर क्वालिटी में कोई विशेष फर्क नहीं आता है।
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घी में निर्मित मिठाई कई दिनों तक देती है बेहतरीन स्वाद
सूखे मेवा से बनी मिठाइयां अधिकतर कई दिनों तक खराब नहीं होती और इनमें मिलावट का डर भी नहीं रहता। इसलिए यहां सूखे मेवे से भी कई तरह की मिठाइयां बनाई जाती है। इनमें काजू कतली, काजू-अंजीर, बादाम कतली भी यहां के कारीगर बेहतरीन तरीके से बनाते हैं। ये मिठाईयां पखवाड़े से अधिक समय तक खराब नहीं होती। वहीं दूसरी ओर दिलखुशाल और राखी हाउस की चक्की व गुलाब जामुन भी एक सप्ताह से अधिक समय तक अपना बेहतरीन स्वाद देने के लिए जिंदा रहते हैं। एक और विशेष बात जो दूसरी जगह नजर नहीं आती। यहां मिठाइयों से लेकर सब्जियों के निर्माण भी घी में ही होते हैं। इसलिए यहां की मिठाइयां सेहत के लिए भी नुकसानदायक नहीं होती। ऐसे में बेहतर जायके के कारण इनकी डिमांड बाहर तक रहती है। जोधपुर के लोग यहां की मिठाइयों को अपने नातेदार-रिश्तेदार एवं मित्रों को देश और विदेश तक पहुंचाते हैं। जोधपुर कई मिठाइयों का जनक रहा है, तो दूसरे राज्यों की निर्मित मिठाइयों को भी इस शहर ने ही शानदार तरीके से बनाने का हुनर सिखाया है। यही कारण है कि स्वाद के मामले में जोधपुर मारवाड़ का रसोईघर कहा जाता है। मारवाड़ी में यह कहावत प्रचलित है कि जोधपुर के खंडे (पत्थर) और खावण खंडे (खाने के शौकीन लोग) दोनों प्रसिद्ध हैं।
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सूर्यनगरी में मिठाइयों का टर्न ओवर करोड़ों का

सूर्यनगरी में मिठाइयों का टर्न ओवर करोड़ों रुपयों का है। यहां बंगाली व शुद्ध देशी घी निर्मित मिठाइयों का सर्वाधिक प्रचलन है। भीतरी शहर के कई गली-मोहल्लों में ख्याति प्राप्त मिष्ठान भंडार के गोदाम हर रोज 16-18 घंटे मिठाई निर्माण के लिए खुले रहते हैं, जहां पूरे दिन मिष्ठान निर्माण में सैकड़ों कारीगर अपनी सेवाएं देते हैं। दिन भर मिठाइयां बनाने वाले ये कारीगर ज्यादातर दूध निर्मित व घी निर्मित मिठाइयों के एक्सपर्ट हैं। मिठाइयों के लिए यहां चौहटे से प्रतिदिन हजारों किलो दूध मिठाइयों की दुकानों पर सप्लाई होता है। तीज-त्योहारों में मिठाइयों के बढ़ते दाम के कारण जोधपुर में दूध के भाव भी आसमान छूते हैं, जबकि भीतरी शहर में एक विशेष गुलाब जामुन के भाव भी दूध पर निर्भर रहते हैं।
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