वल्र्ड साइट डे के मौके पर गुरुवार को एएसजी आई हॉस्पीटल के वरिष्ठ चिकित्सकों ने आंख की बीमारियों और इनसे बचाव के बारे में जानकारी दी। बताया गया कि राजस्थान में आंख का सूखापन गंभीर स्थिति में देखा जा रहा है। बुजुर्गों और महिलाओं में यह समस्या अधिक है। इस कारण आंख की कॉर्निया को नुकसान हो सकता है और रोशनी भी जाने का खतरा रहता है। अस्पताल के वरिष्ठ रेटिना सर्जन और जयपुर शाखा प्रमुख डॉ. अनूप किशोर गुप्ता ने बताया कि एम्स नई दिल्ली के अनुभवी डॉक्टरों डॉ. अरुण सिंघवी व डॉ. शशांक गांग ने सन 2005 में एएसजी के नाम से आई सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल की शुरूआत की थी। हॉस्पीटल की जयपुर शाखा की 8वीं वर्षगांठ के तहत मरीजों को नेत्र रोगों के प्रति जागरुक किया गया। इस मौके पर हॉस्पीटल के डॉ. अनूप किशोर गुप्ता, डॉ, आशीष अग्रवाल, डॉ. ज्योति गर्ग व डॉ. धनराज जाट ने बताया कि आजकल डायबिटीज के कारण आंख के परदे में खराबी यानि डायबिटिक रेटिनोपैथी भारत में अंधेपन का सबसे बड़ा कारण है। इसे नियमित जांच और नवीनतम तकनीकों से ठीक किया जा सकता है। रेटिना की अन्य बीमारियां जैसे रेटिना डिटैचमेंट, मैक्युलर ***** सर्जरी, रेटिनोपैथी ऑफ प्रीमैच्योरिटी का इलाज सफलतापूर्व किया जाता है। इसके अलावा रेटिना की दूसरी बीमारियों के लिए भी सभी तरह की इंट्रविट्रीयल इंजेक्शन भी लगाए जाते हैं।
डॉ. आशीष अग्रवाल ने बताया कि हम अत्याधुनिक तकनीकों से लेसिक (कस्टमाइज लेसिक) करते हैं जिससे 9 से 10 नंबर तक का चश्मा हटाया जा सकता है और कॉर्निया की अब्रेशंस (कमियां) भी जाती हैं। जिन लोगों का चश्मा लेसिक से नहीं हट सकता है उन लोगोंं का आईसीएल (इंप्लांटेबल कॉन्टेक्ट लेंस) व बायोप्टिक्स से 20 से भी ज्यादा नंबर हटाया जा सकता है। यह 18 से 50 साल तक के मरीजों के लिए कारगर हैं। उन्होंने बताया कि मोतियाबिंद ऑपरेशन की समय एडवांस मल्टीफोकल लेंस के इंप्लांटेशन से चश्मे की जरूरत नहीं पड़ती है।
डॉ. ज्योति गर्ग ने बताया कि बच्चों के चश्मे का नंबर आंखों के सुव्यवस्थित अस्पताल में चेक कराने से उनकी आंखों की बीमारियों की जांच हो जाती है और वक्त रहते उनका इलाज हो सकता है। पुतली में उभार होने की समस्या (केरेटोकोनस) आठ से नौ साल के बच्चों में शुरू होती है और 40 साल तक बढ़ती हैं। केरेटोकोनस को रोकने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों से उपचार यहां उपलब्ध है और मरीज को नजर के लिए विशेष तरह के कॉन्टेक्ट लेंस दिए जाते हैं। इससे मरीज को कॉर्निया ट्रांसप्लांट की जल्दी आवश्यकता नहीं पड़ती है। उन्होंने बताया कि कोर्निया में खराबी होने पर अब पूरा कोर्निया बदलने की जरूरत नहीं है। जो भाग या लेयर खराब हुई है, उसी को बदल दिया जाता है। इससे मरीज की जल्दी रिकवरी तो होती ही है, साथ ही संक्रमण व रिजेक्शन का खतरा भी कम हो जाता है। इसके अलावा लिंबल स्टैम और एम्न्योटिक मैमरेन एवं सभी ट्रांसप्लांटेशन की सुविधा उपलब्ध है।
डॉ. धनराज जाट ने बताया कि राजस्थान में शुष्क वातावरण के कारण ड्राइ आई सिंड्रोम की समस्या ज्यादा है। 60 से 70 फीसदी लोग इससे पीडि़त हैं। आंख का लूब्रीकेशन कम होने से व ऑर्थराइटिस के मरीजों में यह समस्या होती है जिसका पंक्टल प्लग तकनीक से इलाज संभव है। वहीं आंखों के तिरछेपन का ऑपरेशन आधुनिक तकनीक से संभव है। ऑप्टिक नस की बीमारियों का भी जल्द निदान होने पर उपचार संभव है।