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जयपुर

राजधर्म निभाए सरकार तो जिले लें आकार

नए जिलों के गठन और इनमें से कुछ का दर्जा खत्म करने को लेकर सियासी घमासान के बीच पिछले 43 वर्षों में घोषित जिलों के अब तक सुविधा सम्पन्न नहीं बन पाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ी वजह यही सामने आती है कि सरकारें ऐसे फैसलों को लेकर राजधर्म निभाने में पीछे रह जाती हैं। इसका उदाहरण है परमेश चन्द्र कमेटी की सिफारिश के बावजूद चार शहर-कस्बों को करीब 15 वर्ष तक जिले का दर्जा पाने का इंतजार रहा।

जयपुरJan 16, 2025 / 07:10 pm

GAURAV JAIN

– 8 जिलों में से 4 की सिफारिश 15 साल पहले की

अनूपगढ़-सांचोर जिले का दर्जा खत्म करने पर उठे सवाल

– सरकार का जवाब दूरी नहीं जिला बनाने का प्रमुख आधार
जयपुर. नए जिलों के गठन और इनमें से कुछ का दर्जा खत्म करने को लेकर सियासी घमासान के बीच पिछले 43 वर्षों में घोषित जिलों के अब तक सुविधा सम्पन्न नहीं बन पाने पर भी सवाल उठ रहे हैं। बड़ी वजह यही सामने आती है कि सरकारें ऐसे फैसलों को लेकर राजधर्म निभाने में पीछे रह जाती हैं। इसका उदाहरण है परमेश चन्द्र कमेटी की सिफारिश के बावजूद चार शहर-कस्बों को करीब 15 वर्ष तक जिले का दर्जा पाने का इंतजार रहा। सियासी आरोप-प्रत्यारोप के बीच इन दिनों अनूपगढ़ व सांचोर जिले का दर्जा समाप्त होने पर सवाल उठ रहे हैं। हालांकि इस मसले पर राज्य सरकार का तर्क है कि कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण दूरी के आधार पर जिला नहीं बनाया जा सकता।
नए जिले बनाते समय पिछली कांग्रेस सरकार ने तर्क दिया था कि जिलों का आकार घटाने और पिछड़े इलाकों को जिला बनाने से विकास की रफ्तार बढ़ सकती है। इसी आधार पर 17 नए जिले बनाए गए। मौजूदा भाजपा सरकार 9 जिले समाप्त करने के बाद तर्क दे रही है कि किसी भी जिले में कम से कम अपने खर्च लायक राजस्व जुटाने की क्षमता तो हो। हालांकि आदिवासी, रेगिस्तानी क्षेत्रों को राजस्व व आबादी के पैमाने से छूट दी गई है। इस बीच जिलों के विकास को लेकर पड़ताल में सामने आया कि धौलपुर, राजसमंद सहित कई जिलों को देखकर आज भी जिले जैसा अहसास नहीं होता।
वक्त बदला, तर्क बदले

कांग्रेस शासन: भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी रामलुभाया की कमेटी की सिफारिश के आधार पर जिले बनाए। जिला मुख्यालय की अंतिम गांव से दूरी के आधार पर लोगों की सुविधा के लिए अनूपगढ़ व सांचोर को भी जिला बनाया।
मौजूदा सरकार: भारतीय प्रशासनिक सेवा के पूर्व अधिकारी ललित के. पंवार की कमेटी की सिफारिश के आधार पर निर्णय किया। न्यूनतम 6-7 तहसील, पहले से उपलब्ध सुविधाएं और जनसंख्या वृद्धि दर जिला बनाए रखने के प्रमुख आधार रहे, वहीं कनेक्टिविटी बढ़ने के कारण दूरी को जिले के लिए आधार नहीं माना।
5 में से 1 ही बना जिला: भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे परमेश चंद्र की कमेटी ने प्रतापगढ़, बालोतरा, ब्यावर, डीडवाना-कुचामन व कोटपूतली-बहरोड़ को जिला बनाने की सिफारिश की, लेकिन 2008 में प्रतापगढ़ को ही जिला बनाया।
आंकड़ों में यह है िस्थति

आबादी: राष्ट्रीय स्तर पर एक जिले की औसत आबादी 22 लाख है। 50 जिले होने पर प्रदेश में यह औसत 11-12 लाख था, जो 41 जिले रहने पर 16-17 लाख हो गया। (आबादी, जनगणना-2011 के अनुसार)
उपखंड: 50 जिले होने के समय 10 जिलों में दो से चार उपखंड थे और कुछ उपखंडों में आबादी लगभग 50,000-60,000 थी। वर्तमान में आदिवासी क्षेत्र सलूम्बर तथा मरुस्थलीय जैसलमेर व बालोतरा जिलों में चार-चार उपखंड हैं। वहीं 12 जिलों में 5 से 7 उपखंड हैं।
इसलिए बचे ये जिले

सलूम्बर: पर्यटन महत्व वाले किले-महल हैं। आदिवासी क्षेत्र होने से आबादी व घनत्व के पैमाने में रियायत।

बालोतरा: रिफाइनरी से विकास होगा। रेगिस्थानी क्षेत्र के आधार पर आबादी व घनत्व के पैमाने में रियायत
खैरथल-तिजारा: राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से नजदीक। भिवाड़ी औद्योगिक क्षेत्र व खैरथल मंडी आर्थिक ताकत।

जिला बनाने के लिए आधार

पुराने जिले से दूरी, प्रस्तावित जिले में सुविधाओं की स्थिति, जिला बनाने पर आने वाला खर्च, प्रस्तावित जिले की आबादी, नए जिले में उपखंड।
ऐसे बनते गए जिले

1956- 26 जिले

1982- धौलपुर

1991- बारां, दौसा व राजसमंद

1994-हनुमानगढ़

1997- करौली

2008-प्रतापगढ़

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