ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि उनके जन्म से संबंधित सबसे प्रचलित कथा के अनुसार माता अनसूया के पतिव्रत धर्म के बल पर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के संयुक्त अंश से दत्त भगवान का जन्म हुआ। श्रीमद्भागवत में भी इस कथा का उल्लेख है। पुराणों और अन्य सनातन ग्रंथों में दत्तात्रेयजी का उल्लेख है। इन पर आधारित अवतार-चरित्र और गुरुचरित्र नामक ग्रंथों को तो वेदतुल्य मानते हैं। वैष्णव, शैव और शाक्त के संगमस्थल के रूप में उन्होंने त्रिपुरा राज्य में शिक्षा-दीक्षा दी।
साथक और योगी के साथ वे गुरू भी थे। दत्तात्रेयजी ने मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्य अर्जुन को तन्त्र विद्या, नागार्जुन को रसायन विद्या और परशुरामजी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान किया। उन्होंने गुरु गोरखनाथ को योगासन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग सिखाया, शिवजी के पुत्र कार्तिकेय को भी अनेक विद्याएं दीं। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश दिया। भगवान परशुराम का नाम भी उनके शिष्यों में लिया जाता है।
भगवान दत्तात्रेय ने जीवन में 24 गुरु बनाए। इनमें पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, चंद्रमा, सूर्य, कपोत, अजगर, सिंधु, पतंग, भ्रमर, मधुमक्खी, गज, मृग, मीन, पिंगला, कुररपक्षी, बालक, कुमारी, सर्प, शरकृत, मकड़ी और भृंगी शामिल हैं। दत्तात्रेय भगवान बहुत बड़े वैज्ञानिक थे जिन्होेंने चिकित्सा शास्त्र में भी खासी शोध की थी। दत्तात्रेयजी को वायुयान से संबंधित अथाह ज्ञान था। सबसे खास बात तो यह है कि उन्हें पारा यानि मर्करी के माध्यम से वायुयान उड़ाने की प्रक्रिया ज्ञात थी।