पत्रिका पड़ताल में उजागर हुआ कि पहले समिति व प्राधिकरण की नियमित बैठक होती थीं। इसमें पैसों के लेन-देन को भी जांचा जाता था। रिटायर न्यायिक अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता भी पूछताछ करते थे। पूर्ण संतुष्टि के बाद ही स्वीकृति दी जाती थी। नई समिति के गठन के बाद कोई बैठक नहीं हुई। बिना समिति की स्वीकृति के ही फैसले होने लगे।
चिकित्सा शिक्षा निदेशालय ने जिस आदेश से समिति और प्राधिकरण को भंग किया, उसे गायब कर दिया। इस आदेश की प्रति न तो अधिकारियों के पास है और न ही विभाग की वेबसाइट पर है। पत्रिका ने जब विभाग से सवाल किया कि नई समिति क्यों बनाई तो जवाब में 18 अप्रेल 2023 का आदेश थमा दिया। इस आदेश में विभाग के 21 अक्टूबर 2021 के एक आदेश का हवाला देकर दोनों समितियों का एकीकरण कर नई कमेटी गठित करने का उल्लेख है।
चिकित्सा शिक्षा आयुक्त इकबाल खान का कहना है कि समिति के अध्यक्ष चिकित्सा शिक्षा सचिव होते थे। प्राधिकरण का अध्यक्ष अधीक्षक या प्राचार्य थे। नियम बदलने के पीछे क्या मंशा रही, इस बारे में मैं कुछ नहीं कह सकता।