इस शुभ बेला में यदि आप भी मां के दर्शन करना चाहते हैं तो इन मंदिरों में जरूर जाएं। कहा जाता है कि यहां मां, भक्तों के सारे दुख हर लेती है। आइए आपको इन मंदिरों के बारे में बताते हैं।
राजस्थान के बीकानेर से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित करणी माता मंदिर में कई सारे रहस्य छिपे हैं। इसका निर्माण प्राचीन काल में बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह ने करवाया था, मंदिर में 25 हजार से भी अधिक चूहे मौजूद हैं। मान्यता है कि ये चूहे करणी माता की संतान हैं। संध्या आरती के समय सभी चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं। जानकर आश्चर्य होगा कि इतने चूहे होने के बावजूद भी मंदिर में कोई दुर्गंध नहीं आती। ऐसी मान्यता है कि यदि आपको सफ़ेद चूहों के दर्शन होते हैं तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
राजस्थान के सीकर में स्थित जीणमाता मंदिर बहुत मशहूर है। चैत्र नवरात्रि के दौरान यहां काफी भीड़ रहती है। कहा जाता है कि एक वक्त जीणमाता के चमत्कार के सामने औरंगजेब भी नतमस्तक हो गए थे। वे माता के चमत्कार से इतना प्रभावी हुए कि मंदिर में अखंड ज्योति शुरू कर उसका तेल दिल्ली दरबार से भेजना शुरू कर दिया था। जीणमाता मंदिर में तब से आज तक वही ज्योति अखंड रूप से जल रही है।
इस मंदिर को अब तनोटराय मातेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। भारत-पाक सरहद के करीब जैसलमेर से 120 किमी दूरी पर स्थित तनोट माता मंदिर श्रद्धालुओं की श्रद्धा का केंद्र है। 1965 के भारत-पाक युद्ध में तनोट राय माता मंदिर परिसर में भी जबरदस्त बमबारी की गई थी, लेकिन माता तनोत के चमत्कार से कोई भी बन नहीं फटा। इसके बाद से ‘बीएसएफ’ इस मंदिर की पूजा-अर्चना और प्रबंधन एक ट्रस्ट के माध्यम से संभाल रहा है। हर साल हजारों की तादाद से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं। नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है।
पाली जिले में स्थित शीतला मंदिर में भक्त हजारों की तादाद में माता के दर्शन करने आते हैं। यहां मौजूद चमत्कारी घड़े की कहानी बेहद ही दिलचस्प है। इस चमत्कारी घड़े में अब तक कई लाख लीटर पानी डाला जा चुका है, लेकिन मां के आशीर्वाद से घड़ा भरा नहीं। इसके पीछे मान्यता है कि बहुत पहले यहां बाबरा नामक राक्षस रहा करता था, जब कभी भी किसी ब्राह्मण के घर में शादी होती तो राक्षस दूल्हे को मार देता। इससे गांव वाले बेहद परेशान थे। राक्षस से मुक्ति के लिए स्थानीय लोगों ने मां शीतला की पूजा की, भक्तों से प्रसन्न होकर मां शादी में एक छोटी – सी कन्या के रूप में आईं और अपने घुटनों से राक्षस को दबोचकर मार डाला। मरते समय राक्षस ने माता से वरदान मांगा कि मुझे प्यास बहुत लगती है इसलिए उसे साल में दो बार पानी पिलाया जाए। कहते हैं तभी से इस घड़े में साल में दो बार शीतला सप्तमी और ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को पानी भरने की परंपरा चली आ रही है, और कभी भी इस चमत्कारी घड़े का पानी नहीं भरता।
करौली में स्थित कैला देवी मंदिर आकर्षण का प्रमुख केंद्र है। यहां विराजीत कैला देवी यदुवंशी है, लोग इन्हें भगवान श्री कृष्ण की बहन मानते हैं। मान्यता है कि बाबा केदारगिरी ने कठोर तपस्या कर माता के श्रीमुख की स्थापना की थी। मंदिर के पास स्थित चमत्कारी कालीसिल नदी में स्नान कर माता के दर्शन करने से कई प्रकार के रोग एवं कष्ट दूर होते हैं। इस नवरात्रि यदि मौका मिले तो यहां एक बार जरूर जाएं।