आमतौर पर यह होता है कि सरकार बदलने के बाद पिछली सरकार में नियुक्त चेयरमैन अपने पदों से इस्तीफा दे देते हैं, लेकिन अब तक करीब एक दर्जन बोर्ड-निगमों के चेयरमैन, वाइस चेयरमैन को छोड़कर अधिकांश अपने पदों पर जमे बैठे हैं। जिन नेताओं ने इस्तीफा दिया है उनमें प्रमुख रूप से अभाव अभियोग निराकरण समिति, आरटीडीसी के चेयरमैन, कुछ अन्य बोर्डों के वाइस चेयरमैन और सदस्य शामिल हैं। इसके अलावा विप्र कल्याण बोर्ड के चेयरमैन महेश शर्मा ने तो चुनाव के दौरान टिकट नहीं मिलने पर इस्तीफा दे दिया था। माना जा रहा है कि अब जल्द ही भाजपा सरकार एक आदेश जारी कर इन सब नियुक्तियों को रद्द कर देगी।
चाैथे साल में की थी राजनीतिक नियुक्तियां
पूर्व की गहलोत सरकार ने अपने चौथे साल की शुरुआत में राजनीतिक नियुक्तियों का पिटारा खोला था। इनमें 70 से ज्यादा नेताओं को विभिन्न बोर्ड-आयोगों में नियुक्ति दी गई थी। इनमें कई विधायकों के अलावा पूर्व विधायकों, विधायक का चुनाव लड़े नेताओं और अफसरों को भी चेयरमैन बनाकर उपकृत किया गया था। इनमें विधायकों को तो सरकार मंत्री का दर्जा नहीं दे पाई थी, लेकिन बाकी नेताओं को कैबिनेट और राज्य मंत्री का दर्जा दिया गया था। वे आज भी वेतन और भत्तों का लाभ ले रहे हैं।
कैबिनेट और राज्यमंत्री का दर्जा
सरकार ने कई बोर्ड निगमों के चेयरमैनों को कैबिनेट और राज्यमंत्री का दर्जा दिया था। कैबिनेट मंत्री के दर्जा वाले चेयरमैनों को वेतन 65 हजार और सत्कार भत्ता 55 हजार कुल एक लाख 20 हजार की राशि दी जा रही है। वहीं राज्यमंत्री का दर्जा प्राप्त अध्यक्षों को वेतन 62 हजार और सत्कार भत्ता 55 हजार कुल एक लाख 17 हजार की राशि हर माह दे रहे हैं। इससे राजकोष पर भी बोझ पड़ रहा है। यहीं नहीं कई चेयरमैनों के पास तो गनमैन की सुविधा भी चल रही है।