राजनीति के दबंग नेता माने जाने वाले भैरोंसिंह शेखावत स्वभाव से मिलनसार थे। ‘बाबोसा’ या ‘ठाकर साहब’ के नाम से अपनी अलग ही पैठ बनाने वाले पूर्व उपराष्ट्रपति दिवंगत भैरो सिंह शेखावत जनसंघ से लेकर भाजपा तक के सफर में उन तमाम दिग्गज नेताओं की फहरिस्त में शामिल हैं, जिनकी भूमिका को शायद ही नजर अंदाज किया जा सके। आईये जानते है उनके जीवन संघर्ष से जुड़ी कई रोचक बातें…
पढ़ाई के लिए चुनी थी कठिन डगर
जनमानस में बाबोसा के नाम से पहचान रखने वाले भैरोंसिंह का जन्म 23 अक्टूबर 1923 में तत्कालीन जयपुर रियासत के गांव खाचरियावास में किसान पिता देवी सिंह शेखावत के बेहद साधारण परिवार में हुआ था। मां का नाम बने कंवर था। शुरूआती शिक्षा गांव से करने के बाद उनके सामने आगे की पढ़ाई की समस्या खड़ी हो गई थी। पर मन में पढ़कर कुछ कर गुजरने की चाह थी। आखिरकार, हाई स्कूल के लिए जोबनेर जाने की कठिन डगर तय की। वे हर शनिवार को साथियों के साथ पैदल ही जोबनेर से खाचरियावास आते और सोमवार को फिर पैदल ही रवाना होते।
कॉलेज में प्रवेश लेते ही नियति ने किया खिलवाड़
हाई स्कूल के बाद भैरोंसिंह ने जयपुर के महाराजा कॉलेज में प्रवेश लिया। पर यहां भी नियति ने खिलवाड़ किया। पिता की मौत ने परिवार के आठ सदस्यों के भरण-पोषण का भार उनके किशोर कंधे पर डाल दिया। इसके हल के लिए उन्होंने खेत में हल थाम लिया। इसी बीच पुलिस में नौकरी भी मिली। लेकिन, खाकी में मन नहीं रमने पर वह फिर खेती की तरफ ही लौट आए। चुनाव लड़ने के नहीं थे रुपए
इसी बीच जन संघ के सक्रिय सदस्य रहने पर 1952 में उन्हें दांतारामगढ़ से विधानसभा चुनाव लड़ने का अवसर मिला। जिसे भुनाते हुए उन्होंने पहला चुनाव जीतकर राजनीति के पायदान पर पहला सफल कदम रख दिया। तब खास बात ये रही कि उनके पास चुनाव लड़ने के लिए रुपए नहीं थे। सीकर के जनसंघ कार्यालय में खुद उन्होंने ये परेशानी तत्कालीन जनसंघ के नेताओं के सामने भी रखी थी। जिस पर कार्यकर्ता किशन सिंह हाजरिका ने चुनावी मद के लिए 50 रुपए देकर दिए थे। तब भैरोंसिंह ने किशन सिंह को सेठ की पदवी दी थी।
राजनीति की हर सीढ़ी को किया पार
इसके बाद तो वे राजनीति की बुलंदियों की तरफ जाती हर सीढ़ी को वे पार करते चले गए। दांतारामगढ़ के अलावा श्रीमाधोपुर, जयपुर की किशनपोल, छबड़ा, आमेर, धौलपुर व बाली विधानसभा क्षेत्र से कुल 10 बार विधायक बनने के साथ वे 1977,1990 व 1993 में तीन बार मुख्यमंत्री बने। इस बीच जनसंघ के प्रदेशाध्यक्ष व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, राज्यसभा सदस्य तथा विधानसभा नेता प्रतिपक्ष के पद को सुशोभित करते हुए 2002 में 11वें उपराष्ट्रपति पद पर निर्वाचित हुए। लंबे राजनीतिक जीवन के बाद 15 मई 2010 में पंचतत्व में विलीन हो गए।