जानकारों की मानें तो यह मंदिर 11वीं सदी का है। अंबा माता के नाम पर ही यहां स्थित दुर्ग का नाम आमागढ़ पड़ा। माता की सवा दो फीट उंची प्रतिमा है, जो यहीं प्रकट हुई बताते है। मूर्ति प्रकट होने के बाद यहां एक छोटा सा मंदिर बनाया गया। बाद में करीब 32 फीट उंचे गुबंद का निर्माण करवाकर माता का मंदिर बनाया गया। इसके बाद एक समिति का गठन कर करीब 10 साल पहले मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया। मंदिर में कांच का काम करवाया गया, जो मंदिर की भव्यता को बढ़ा रहा है। बाद में इस समिति को अंबा माता आंबागढ़ दुर्ग आदिवासी मीना समाज विकास एवं सेवा समिति के नाम से रजिस्ट्रर्ड करवाया गया।
अंबा माता की पूजा—अर्चना के लिए एक पूजा समिति का गठन कर रखा है। पूजा समिति के संयोजक दामोदर लाल मीना बताते है कि अंबा माता का यह मंदिर करीब 1800 साल पुराना है। मीना समाज के लोग माता को कुलदेवी के रूप में पूजते है। पहले यहां चूने—पत्थर से बना मंदिर हुआ करता था, बाद में यहां मार्बल व कांच का काम करवाया गया। करीब 600 वर्गगज में बना यह मंदिर लोगों के लिए आस्था का केन्द्र बन गया है। यहां नियमित रूप से दौसा, सवाई माधोपुर, करौली सहित प्रदेशभर से भक्त माता के दर्शनों के लिए आते हैं। वहीं महाराष्ट्र से भी कुछ भक्त हर साल माता के दर्शनों के लिए आते है।
अंबा माता के मंदिर पहुंचने के लिए आमागढ़ की पहाड़ियों पर भक्तों को करीब ढाई किलोमीटर पहाड़ी रास्ते से गुजरना पड़ता है। इस बीच प्रसिद्ध सूर्य मंदिर भी आता है, सूर्य मंदिर तक रास्ता सही है। इसके बाद करीब डेढ़ किलोमीटर का रास्ता पथरीला है, जिससे भक्तों को परेशानी होती है। यहां रोड लाइट की भी व्यवस्था नहीं है। जंगल में होने से माता के दर्शन सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक और शाम 4 बजे से 7 बजे तक ही खुले रहते है। नवरात्र में माता के दर्शन दिनभर खुले रहते है।
अंबा माता के मंदिर में रह साल गुप्त नवरात्र में माता के पदयात्रा आती है, तब यहां मेले भरता है। इसके अलवा अब 9 अगस्त को आदिवासी दिवस पर यहां महोत्सव का आयोजन होने लगा है। इस दिन यहां भजन संध्या के अलावा प्रसादी का आयोजन होता है। मंदिर में पूजा करने वाले पूरण कुमार ने बताया कि अंबा माता को नियमित रूप से खीर, पुआ, पुड़ी, हलुवा व रोटी—सब्जी का भोग लगाया जाता है। सभी समाज के लोग यहां माता के दर्शन करने पहुंचते है। जिन भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है, वे यहां आकर सवामणी करते है।
अंबा माता मंदिर में पूजा करने वाले गोपी मीना बताते है कि माता को ढाई मीटर कपड़े में पोशाक तैयार होती है। माता के करीब 1800 साल से यहां नियमित अखंड ज्योत भी जल रही है। अंबा माता यहां स्वयं ही प्रकट हुई है।
अंबा माता मंदिर परिसर में ही शिव परिवार के साथ हनुमानजी महाराज और भैंरूजी का मंदिर है। यहां आने वाले भक्त हनुमानजी और भैरूजी के भी दर्शन करते है।