विधानसभा में हारी, लोकसभा में जीती 1-संजना जाटव: संजना ने पहली बार साल 2023 में विधानसभा का चुनाव लड़ा था। कठूमर विधानसभा सीट पर इनकी हार राजस्थान में सबसे कम मतों से हुई थी। ये मात्र 409 वोटों से हार गई थीं। हारने के बाद भी कांग्रेस ने इन पर भरोसा करते हुए भरतपुर लोकसभा सीट से टिकट दिया। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का क्षेत्र होने के कारण इनकी जीत की उम्मीद कम जताई गई। लेकिन मतदाताओं ने संजना जाटव को लोकसभा में जीता दिया।
सांसद से विधायक का चुनाव हारे, अब फिर जीते 2-भागीरथ चौधरी: पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सात सांसदों को मैदान में उतारा था। जिनमें से चार जीते और तीन हार गए। हारने वालों में से भागीरथ चौधरी भी थे। हारने वाले सांसदों को दुबारा टिकट मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी। लेकिन भाजपा ने भागीरथ चौधरी को ही टिकट दिया और वे जीत गए।
लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारे, इस बार जीते 3. अमराराम: ये कई वर्षों से लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि इन्हें ज्यादातार हार का ही सामना करना पड़ा है। माकपा का झंडा थामे इस उम्मीदवार को इस बार कांग्रेस के गठबंधन के चलते जीत मिली है। ये लगातार तीन विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसके बाद अब जनता ने लोकसभा का चुनाव जीता दिया।
कभी भाजपा से तो कभी कांग्रेस से गठबंधन 4. हनुमान बेनीवाल: इनकी पार्टी कभी भाजपा से गठबंधन करती है तो कभी कांग्रेस से। नतीजा दोनों ही बार जीत गए। पिछले लोकसभा चुनाव में इन्होंने भाजपा से गठबंधन किया और जीते। हालांकि बाद में समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद इस बार कांग्रेस से गठबंधन कर जीत गए। पिछली बार सांसद बनने पर खींवसर सीट से अपने भाई को मैदान में उतारा और जीत दिलाई थी, इस बार फिर से चर्चा है कि विधायक से सांसद बनने पर खींवसर सीट से किसको मैदान में उतारा जाएगा।
“जबरदस्ती दिया है टिकट” वाला बयान से आए थे चर्चा में 5-बृजेन्द्र ओला: बृजेन्द्र ने झुंझूनुं सीट से जीत दर्ज की है। ये यहां से विधायक भी हैं। जब इन्हें कांगेस ने टिकट दिया था तो इन्होंने बेमन से चुनाव लडऩे की इच्छा जताई। इन्होंने बयान जारी करते हुए कहा कि “मैंने चुनाव लडऩे से मना किया था, इसके बाद भी कांग्रेस पार्टी ने मुझे टिकट दिया है। पार्टी संकट में हैं, इसलिए जरूर चुनाव लडूंगा।” इसके बाद इन्हें जनता ने जीता दिया।
सीट बदली, फिर भी नहीं मिली जीत 6- वैभव गहलोत: ये पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे हैं। पिता की विरासत के सहारे अपनी राजनीति चमकाने के प्रयासों में जुटे हैं। पिछली बार इन्होंने जोधपुर सीट से चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं पाए। इस बार इन्होंने जोधपुर की अपेक्षा जालोर सीट चुनी। लेकिन ये सीट भी वैभव को जीत नहीं दिला पाई।
कांग्रेस ने अंतिम समय तक किया गठबंधन का “नाटक”, फिर भी जीत 7-राजकुमार रोत: बीएपी के राजकुमार रोत विधायक बनते ही लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए। सबसे पहले टिकट घोषित किए। यहां से कांग्रेस ने अंतिम समय तक गठबंधन को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा कर दी। नामांकन के अंतिम दिन कांग्रेस ने प्रत्याशी उतार दिया। नाम वापसी के अंतिम दिन जब नाम लेने की बारी आई तो कांग्रेस आलाकमान के निर्देशों को दरकिनार कर कांग्रेस प्रत्याशी ही गायब हो गया। ऐसे में बीएपी के राजकुमार ने अपने दम पर पूरा चुनाव लड़ा। हालांकि कांग्रेस के नेता रोत के समर्थन में चुनाव प्रचार में जुटे रहे।
गठबंधन नहीं, कांग्रेस ने पार्टी में किया शामिल 8-उम्मेदाराम बेनीवाल: विधानसभा का चुनाव रालोपा के टिकट से लड़ा था। लेकिन उम्मेदाराम बेनीवाल हार गए। ऐसे में बाड़मेर में कांग्रेस का रालोपा से गठबंधन की चर्चाएं जोर पकड़ रही थी। लेकिन कांग्रेस ने रालोपा से गठबंधन की जगह रालोपा के नेता उम्मेदाराम बेनीवाल को ही कांग्रेस में शामिल कर टिकट दे दिया। यहां से केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी और निर्दलीय विधायक रविन्द्र भाटी ने भी ताल ठोकी। इन तीनों को दरकिनार करते हुए इन्होंने जीत हासिल कर ली।
दल बदला, लेकिन नहीं मिली सफलता 9-महेन्द्रजीत मालवीया: महेंद्रजीत भाजपा के टिकट से बागीदौरा सीट से विधायक बने थे। ये बांसवाड़ा क्षेत्र के दिग्गज नेता भी माने जाते रहे हैं। इन्हें कांग्रेस से टिकट मिलने की पूरी उम्मीद थी। लोकसभा का टिकट पाने और भाजपा लहर के चलते इन्होंने तुरंत विधायक से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा ने सांसद का टिकट भी दे दिया। लेकिन बीएपी के बढ़ते जनाधार और कांग्रेस के गठबंधन के कारण इन्हें हार का सामना करना पड़ा।
पहली बार लड़ा लोकसभा का चुनाव, जीत गए 10:भूपेन्द्र यादव: इन्होंने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा था। ये राज्यसभा से चुने गए हैं। अलवर से इनका कोई वजूद नहीं होने के बावजूद इन्हें अलवर सीट से उतारा था। यहां यादव बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण इनकी जीत हो गई।