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सीकर की इस बेटी की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम, यह संवार रही है गरीब बच्चों की जिंदगी

आइए रूबरू होते हैं, बासनी बेरास की लाडो रचना ढाका से। जो कि, शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए अपना जीवन खपा रही हैं। इतना ही नहीं, ये बेटी उन पिछडे़ और दलित परिवारों को भी उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही है।

सीकरDec 05, 2016 / 11:35 am

vishwanath saini

सबकी खुशी में हो, मेरी हंसी एेसा मेरा नजरिया कर दो। फैला सकूं शिक्षा की रोशनी मेरे दीपक की लौ कुछ ज्यादा कर दो। जी हां, इन पंक्तियों के भाव को साकार करने में जुटी है गांव की एक बेटी। जिसने तीन दर्जन उन बच्चों को स्कूल से जोड़ दिया, जो कभी पाठशाला का मुंह तक नहीं देख पाए।
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लेकिन, अब यही बच्चे आखर ज्ञान लेकर अपने मन के अंधेरे को मिटाने में लगे हुए हैं। अभाव इनको बालश्रम की घनी खाई की तरफ ढकेल रहा था। आइए रूबरू होते हैं, बासनी बेरास की लाडो रचना ढाका से। जो कि, शिक्षा का उजियारा फैलाने के लिए अपना जीवन खपा रही हैं। इतना ही नहीं, ये बेटी उन पिछडे़ और दलित परिवारों को भी उनके अधिकारों के प्रति जागरूक कर रही है। जो अनपढ़ और निरक्षर होने के कारण अपने हकों को खोते जा रहे हैं।
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एलएलएम (मास्टर इन लॉ) कर चुकी रचना का मानना है कि जब-तक बचपन नहीं सुधरेगा स्वच्छ और स्वस्थ समाज की परिकल्पना साकार नहीं हो सकती। देश का नागरिक यदि शिक्षित और जागरूक होगा तो उसकी उन्नति भी देश के विकास में भागीदार बन सकेगी।
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बतौर रचना का कहना है कि गांव और उसके आस-पास रहने वाले घुमंतू परिवारों के तीन दर्जन बच्चों को स्कूल से जोडऩे पर मन में संतुष्टि है। इनमें चार वे युवा भी शामिल हैं। जिनको कॉलेज स्तरीय शिक्षा दिलाने के लिए इनको आर्थिक मदद मुहैया करवाई। जबकि बावरिया व बंजारा समाज के तीन परिवारों को इनका हक दिलाने के लिए प्रशासन से कानूनन लड़ाई लड़ी। इनको इनके हिस्से का हक भी दिलवाया।
 
शादी के बाद भी जारी रखूंगी सेवा

29 वर्षीय रचना के अनुसार शादी के बाद भी मुहिम जारी रहेगी। ससुराल पक्ष से शर्त भी रखूंगी कि शिक्षा के उजियारे में कोई बाधा नहीं आए। वहां रहकर यदि कोई बच्चा इस अधिकार से वंचित रहता है तो उसके लिए भी संघर्ष बरकरार रहेगा।

पिता से मिली प्रेरणा


रचना के पिता सुल्तान सिंह शारीरिक शिक्षक हैं और मां प्रिंसीपल। रचना ने बताया कि जब इन दोनों को स्कूली बच्चों से घिरा देखती थी। लेकिन, स्कूल जाने के दौरान रास्ते में उन बच्चों को देखकर भी मन कचौट उठता था। जो किसी कारणवस स्कूल नहीं जा पाते थे। इनके बारे में पिता से खुलकर बातचीत की।

उन्होंने राह दिखाई कि पहले बच्चों के माता-पिता को विश्वास दिलाना होगा। बस फिर क्या था। जुट गई मुहिम में शुरूआत में थोड़ी परेशानी हुई। लेकिन, आज वहीं बच्चे दीदी नमस्ते और गुड मॉर्निंग कहते हैं तो मन प्रफुल्लित हो उठता है। बच्चों के नियमित स्कूल जाने पर इनके माता-पिता के चेहरों पर भी मुस्कान लौट आई है।

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