खेतड़ी उपखण्ड़ के गांव बीलवा का अमर सिंह महरानियां दिल्ली के लेडी हार्डिंग अस्पताल में संविदा पर नर्सिंग अधीक्षक पद पर कार्यरत थे। मई 2021 में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कोरोना पीड़ितों का इलाज करते वक्त खुद कोरोना की चपेट में आ गए। फेफड़ों में संक्रमण के कारण वह बिना ऑक्सीजन कंसंट्रेटर बाइपेप के नहीं रह सकते। शुरू में उसी अस्पताल में इलाज किया गया लेकिन बाद में इलाज के लिए जयपुर आना पड़ गया।
पत्नी कविता के अनुसार परिवार की जमा पूंजी, खुद के गहने, जमीन जायदाद बेचने के बाद रिश्तेदार व जान पहचान के लोगों से करीब 30 लाख रुपए का कर्जा लिया जा चुका है। ऐसे में दो छोटे बच्चों व पत्नी कविता के पास पति की सेवा के साथ आंसू बहाने के सिवा कुछ नहीं बचा। पिता रामस्वरूप महरानिया, मां संतोष देवी भी लाचार व असहाय नजर आ रहे हैं। कविता ने बताया कि काफी समय तक जयपुर में इलाज के बाद अब वे घर पर ही ऑक्सीजन सिलेंडर के भरोसे चल रहे हैं। अब हर 15 दिन बाद जयपुर में इनकी रिपोर्ट ले जाकर दवाई लिखवा जाते हैं। डॉक्टर ने अभी ऑक्सीजन सिलेंडर ही एकमात्र सहारा बताया है।
दूसरा नहीं कमाने वाला
कविता ने बताया कि पति अमर सिंह के अलावा घर में कोई दूसरा कमाने वाला नहीं है। बेटा लक्ष्य 9 साल का और बेटी जिया 7 साल की है। देवर बीएससी नर्सिंग की पढ़ाई कर रहा है। पैसे के अभाव में उनकी पढ़ाई भी बाधित हो रही है। वहीं वृद्ध सास-ससुर की सेवा करने की जिम्मेवारी भी उन पर ही है।
अब तो दोस्त भी फोन नहीं उठाते
कविता का कहना है कि उनके पति के दोस्त भी अब फोन नहीं उठाते। उन्हें लगता है कि कहीं पैसों के लिए नहीं बोल दें। किसी संगठन या सरकार की तरफ से भी मदद नहीं मिली। सांसद नरेंद्र खींचड़ के माध्यम से भी अभिशंषा पत्र भेजा जा चुका है, लेकिन कोई मदद नहीं हुई।
रोजाना एक सिलेंडर की जरूरत
अमरसिंह के इलाज में प्रतिदिन एक ऑक्सीजन सिलेंडर की खपत हो जाती है। जबकि ऑक्सीजन कंसंट्रेटर लगा रहता है। लाइट की कटौती होने पर दूसरे सिलेंडर की भी आवश्यकता पड़ जाती है। कविता ने बताया कि जिस हॉस्पिटल में वह नौकरी करते थे, वहां संविदा कर्मी होने के कारण उन्हें कोई लाभ नहीं मिला।