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जगदलपुर

बस्तर के इस मेडिकल कॉलेज में इस तरह हो रहा लोगों का इलाज… देखकर आपके भी उड़ जाएंगे होश

– मेडिकल कॉलेज में रेडियोलॉजिस्ट नहीं, एमरजेंसी केस में मरीज के परिजन सिटी स्कैन की रिपोर्ट पेन ड्राइव में लेकर दर-दर भटकते हैं- ९ किमी दूर जाकर निजी रेडियोलॉजिस्ट से मिलकर करवाते हैं रिपोर्टिंग- जो जांच और रिपोर्टिंग मुफ्त में होनी चाहिए उसके लिए खर्चने पड़ रहे हजारों रुपए

जगदलपुरFeb 20, 2024 / 07:05 pm

Shaikh Tayyab

बस्तर के इस मेडिकल कॉलेज में इस तरह हो रहा लोगों का इलाज... देखकर आपके भी उड़ जाएंगे होश

बस्तर के इस मेडिकल कॉलेज में इस तरह हो रहा लोगों का इलाज… देखकर आपके भी उड़ जाएंगे होश

जगदलपुर. पुरानी फिल्म हातिम ताई में जिस तरह विलेन की जान तोते में होती थी उसी तरह बस्तर में मेडिकल कॉलेज में भर्ती घायलों की जान पेन ड्राइव में होती है। हेड इंज्यूरी या न्यूरा सबंधित ऐसे मरीज जिन्हें सिटी स्कैन कराने की जरूरत होती है ऐसे मरीज के परिजन अपनों की जान बचाने के लिए पहले मेडिकल कॉलेज पहुंचते हैं लेकिन यहां इलाज शुरू होने के पहले सिटी स्कैन की रिपोर्टिंग के लिए एक पेन ड्राइव थमा देते हैं। जिसे लेकर वे अपनों को तपड़ते छोड़ उसकी सिटी स्कैन रिपोर्टिं के लिए यहां वहां फिरते रहते हैं। १८ किमी की दौड़ लगाते हैं और शहर में भारी भरकम पैसे खर्च कर निजी रेडियोलॉजिस्ट के पास जाकर रिपोर्टिंग करवाते हैं, इस पुरी प्रक्रिया तक मरीज की जान बच गई तो ठीक यदि जान चली गई तो मृतक का अंतिम संस्कार कराने घर ले जाते हैं। यह स्थिति है बस्तर के एक मात्र मेडिकल कॉलेज की।

…रिपोर्टिंग में मामला गंभीर निकला तो इलाज के लिए भी सुविधा नहीं
ऐसा नहीं है कि किसी तरह सिटी स्कैन की रिपोर्टिंग कराने के बाद मरीज के परिजनों की समस्या खत्म हो जाती है। रिपोर्ट नॉर्मल है तो कोई बात नहीं, लेकिन यदि रिपोर्ट में इंटरनल ब्लीडिंग या अन्य गंभीर समस्या पता चलती है तो परिजनों की समस्या शुरू होती है। दरअसल यहां कोई भी न्यूरोसर्जन या ट्रामा सेंटर की सुविधा नहीं है। ऐसे में रिपोर्ट गंभीर निकलने के बाद मरीज को बाहर ले जाने और उसमें भी किस अस्पताल में ले जाने जैसी समस्या आती हैं। इतना ही इस गंभीर अवस्था में बाहर ले जाने तक के लिए बेहतर सरकारी एंबूलेंस सुविधा नहीं हैं। भारी भरकम राशि खर्च कर रायपुर, विशाखापटनम या फिर हैदराबाद की ओर बस्तर के लोग इलाज के लिए जाना पड़ता है।
पेन ड्राइव लेकर पहले शहर आते हैं, फिर वापस जाकर बतातें है समस्या
दरअसल यह सारी समस्या मेडिकल कॉलेज में कोई भी रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने की वजह से आ रही है। इसलिए हर दिन ऐसे मरीज जो हेड इंज्यूरी या अन्य गंभीर मरीज जिन्हें तुरंत सिटी स्कैन की जरूरत होती है यह सेवा तो मेकाज में मिल जाती है। लेकिन इसकी रिपोर्टिंग नहीं हो पाती है। ऐसे में यहां मरीज के परिजनों को एक पेन ड्राइव देकर बाहर से रिपोर्टिंग कराने कहा जाता है। इसके लिए वे मेकाज से करीब ९ किमी का सफर तय कर जगदलपुर पहुंचते हैं तो निजी पैथलॉजी में करीब हजार रुपए तक खर्च कर रिपोर्टिंग करवा वापस मेकाज पहुंचते हैं। तब जाकर मरीजों का इलाज शुरू हो पाता है। यदि गंभीर चोट नजर आती है तो उनके इलाज की भी सुविधा यहां नहीं है।
महारानी के लिए रेडियोलॉजिस्ट मिल सकता है तो मेकाज के लिए क्यों नहीं
मेडिकल कॉलेज में लंबे समय से यही स्थिति है। रेडियोलॉजिस्ट की आखिरी पोस्टिंग तो चार साल पहले हुई थी। इसके बाद से यहां सारी मशाने टेक्रिशियन के भरोसे हैं। लेकिन इस विशेषज्ञ की भर्ती के लिए मेकाज प्रबंधन में इच्छा शक्ति की भी कमी नजर आती है। दरअसल हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि इसी सेवा के लिए जिला अस्पताल में रेडियोलॉजिस्ट की लगातार भर्ती होती रही। अभी भी यहां रेडियोलॉजिस्ट हैं। इसलिए सवाल खड़े होता है कि जिला अस्पताल के लिए रेडियोलॉजिस्ट मिल सकता है तो मेकाज के लिए क्यों नहीं।
४ साल से मेडिकल कॉलेज में कोई रेडियोलॉजिस्ट नहीं है
मेडिकल कॉलेज में आखिरी बार रेडियोलॉजिस्ट वर्ष २०२० के जनवरी माह से काम छोडक़र चले गए हैं। इसके बाद यहां पर अब तक कोई दूसरा रेडियोलॉजिस्ट नहीं आया। मेडिकल कॉलेज में सीटी स्कैन के साथ ही अन्य मशीनों की जांच व उनकी रिपोर्ट में भी दिक्कत आ रही है। दरअसल रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख सोनोग्राफी तो कर रहे हैं, लेकिन रिपोर्ट सिर्फ रेडियोलॉजिस्ट ही तैयार कर सकते हैं। इसलिए दिक्कत पेश आ रही है और इसका खामियाजा मरीजों को भुगतना पड़ रहा है।
…इसलिए ७० प्रतिशत मरीजों को किया जाता है रेफर
मेडिकल कॉलेज में रोजाना ३० से अधिक मरीजों का सीटी स्कैन किया जाता है। सबसे ज्यादा हेड इंज्यूरी के मरीज पहुंचते हैं। जिनके तुरंत रिपोर्ट की सख्त आवश्यकता होती है। ऐसे में यहां या तो डॉक्टर फिल्म के आधार पर जांच करते हैं या फिर मरीज को रेफर कर देते हैं। आंकड़ों के मुताबिक ७० प्रतिशत मामले रेफर कर दिए जाते हैं। वहीं ३० प्रतिशत ऐसे दुरस्थ स्थल के मरीज होते हैं जिनको इलाज के सबंध में ज्यादा जानकारी नहीं होती या फिर उनकी रिपोर्ट नॉर्मल रहती है। दरअसल मेकाज में रेडियोलॉजिस्ट के 8 पद स्वीकृत है। सभी खाली है। टेक्निशियन सीटी स्कैन तो कर देते हैं, लेकिन रिपोर्ट के बीना मरीजों का इलाज नहीं हो पा रहा है।
वर्सन
रेडियोलॉजिस्ट के संविदा पद पर नियुक्ति किए जाने का प्रयास किया जा रहा है। फिलहाल सीनियर रेसिडेंट की मदद व चिकित्सक फिल्म के आधार पर मरीज का उपचार कर रहे हैं।

– डॉ. अनुरूप साहू, अधीक्षक, मेकाज अस्पताल

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