इस समय संभागभर के गांव-गांव से लगभग 700 से अधिक देवी-देवता दशहरा पर्व में शामिल होने पहुंचे हैं, देवी- देवताओं को लेकर पुजारी तहसील कार्यालय में राशन लेते नजर आ रहे हैं। यहां देवी-देवताओं के चिह्न जिसमें मंदिर का छत्र, तोड़ी और टंगिया आदि की एंट्री करवानी होती है, तब जाकर पूजन सामग्री मिलती है | इस पूजा के सामान में 2 किलो चावल, दाल, तेल, घी, नमक, नारियल समेत अन्य जरूरत के सामान दिए जाते हैं।
तहसील कार्यालय में प्रशासन करता है इंतजाम बस्तर दशहरा पर्व को मनाने के लिए दशहरा समिति के बनाई जाती है। इस समिति के अध्यक्ष बस्तर के सांसद और सचिव तहसीलदार होते हैं। समिति के सचिव पर पूरी व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है और पर्व में शामिल होने के लिए पहुंचने वाले देवी देवताओं को पूजा के सामान के साथ राशन की व्यवस्था भी तहसील कार्यालय से होती है। हर साल की तरह इस साल भी दशहरा की रस्म के दौरान यहां देवी-देवताओं को लाइन में लगाकर राशन दिया गया है |
पुजारी देवी-देवताओं के नाम लिखाते हैं जिला कोण्डागांव के बड़ेडोंगर के पुजारी सनऊ सलाम ने बताया कि वे अपने गांव के कुलदेवी को लेकर यहां पहुंचे हैं। वे हर साल ऐसे ही लाइन में लगकर पूजा की सामग्री और राशन लेते हैं। खास बात ये है कि इस लाइन में अपने साथ देवी-देवताओं के छत्र, तोड़ी और अन्य चिह्नों को लेकर भी पुजारी खड़े होते हैं। जिसके आधार पर तहसील कार्यालय में उनकी एंट्री की जाती है ।
कुम्हड़ाकोट में होता है देवी-देवता का समागम ओडि़शा राज्य कस्तोंगा गांव के निवासी पीलदास ने बताया कि ऐतिहासिक बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए पूरे संभाग के 7 जिलों से सैकड़ों की संख्या देवी-देवता यहां पहुंचे हैं। नवरात्रि शुरू हाेने के बाद से यहां देवी-देवताओं का आना शुरू हो जाता है। बाहर रैनी में जब राज परिवार के सदस्य कुम्हाड़ाकोट जंगल में चोरी कर रखे हुए विजय रथ को लेने पहुंचते हैं, तो उनके साथ देवी-देवता भी चलते हैं। कुम्हाड़ाकोट में दंतेश्वरी माता और मावली माता के साथ सैकड़ों देवी-देवताओं का समागम होता हैं, जो बस्तर दशहरा को और भी विशेष बनाती है।