नक्सल प्रभावित क्षेत्रों (Naxal infested areas) में छत्तीसगढ़ के बस्तर के अलावा ओडिशा के मलकानगिरी और कोरापुट, तेलंगाना के भद्रादी कोट्टागुड़म, मूलुग और आंध्रप्रदेश के राजमहेंद्री जिले शामिल हैं। डेढ़ दशक पहले नक्सलियों की दहशत (Naxal terror) के कारण लोग मतदान करने अपने घरों से नहीं निकलते थे लेकिन अब सुरक्षा बलों की मौजूदगी के कारण लोगों में सुरक्षा का भाव पैदा हुआ है। अब लोग खुद आगे आकर नक्सलियों के
चुनाव बहिष्कार के आह्वान का विरोध करते हैं। इन इलाकों में चुनाव के दौरान नक्सली वारदातें (Naxal violence) भी कम हुई हैं और लोग बेखौफ होकर चुनाव में मतदान कर रहे हैं। नक्सल प्रभावित इलाकों में मतदान 30 फीसदी तक बढ़ गया है।
पुलिस के मुताबिक वर्ष 2018 से 2023 तक नक्सली घटनाओं में 76 फीसदी की कमी आई है। 2018 में जहां 833 वारदातों में 240 लोगों की मौत हुई थी, वहीं जुलाई 2023 तक 273 वारदातों में मौत का आंकड़ा घट कर 79 रह गया है। इनमें जवानों की शहादत भी शामिल है।
नक्सल प्रभावित बस्तर सीट पर लोकसभा चुनाव का आंकड़ा गवाही दे रहा है कि लोगों को बहिष्कार की धमकी की परवाह नहीं। बस्तर लोकसभा क्षेत्र में 1957 मतदान केन्द्र हैं। इनमें से पहुंचविहीन तथा धुर नक्सल क्षेत्र में स्थित 234 मतदान केन्द्र सुरक्षित स्थानों में स्थानांतरित किए जा रहे हैं।
बस्तर लोकसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग ने 80 हजार अर्धसैनिक बलों की तैनाती के निर्देश दिए हैं। इसके तहत इन बलों की तैनाती अधिक से अधिक संवेदनशील इलाकों में करने की व्यवस्था की जा रही है।
देश में नक्सलवाद तेजी से सिमटता जा रहा है। एक दशक पूर्व जहां देश के दस राज्यों के 106 जिले नक्सल प्रभावित हुआ करते थे जो 2021-22 में जिलों की संख्या घटकर 70 पहुंच गई थी।
केन्द्रीय गृह मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक वर्तमान में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या घटकर 46 हो गई है, जिसमें छत्तीसगढ़ के 12 जिले शामिल हैं।