बोड़ा धरती से निकलने वाले जंगली खादय है। यह बोड़ा साल वृक्षों के नीचे ही निकलता है। जब बादलों की गर्जना होती है, उमस का वातावरण हो जाता है उस समय बोड़ा स्वत जमीन के अंदर आकार लेता है। स्थानीय ग्रामीण धरती को खोदकर बोड़ा निकालते है। बोड़ा आकार में आलू से लगभग आधा या उससे भी छोटा होता है।
रंग इसका भूरा होता है। उपर पतली सी परत एवं अंदर सफेद गुदा भरा होता है। बस्तर को सालवनों का द्वीप कहा जाता है। नारायणपूर साल वृक्ष क्षेत्र में ज्यादा है इसलिये बोड़ा की आवक सबसे ज्यादा होती है। बोड़ा खाने वालों के अनुसार बोड़ा दो किस्म का होता है जात बोड़ा और राखड़ी बोड़ा, जिसमें से जात बोड़ा ज्यादा स्वादिष्ट होता है।
यह है इसका गुण
बोड़ा में आवश्यक खनिज लवण एवं कार्बोहाईड्रेट भरपूर मात्रा में होता है। इसकी सब्जी बेहद ही स्वादिष्ट होती है। बाजार में आते ही लोग इसे खरीदने के लिये टूट पड़ते है। इसकी आवक सिर्फ शुरूआती बरसात तक लगभग एक माह तक ही होती है। इसलिए इसकी कीमत भी आसमान को छूती है। शुरूआती दौर में यह बोड़ा 1600 रू. किलो तक बिकता है। बाद में अधिक आवक से इसकी कीमत दौ सौ से तीन सौ रू. किलो तक हो जाती है।
सबसे महंगी सब्जी
ग्रामीण महिलायें इसे आज भी सोली एवं पायली के पैमाने से बेचती है। एक सोली लगभग 250 ग्राम की होती है वहीं पायली के अलग अलग मान है। एक सोली बोड़ा शुरूआत में 300 एवं बाद में 50 की दर से मिलता है। यह बस्तर की सबसे महंगी सब्जियों में से एक है फिर भी इसके स्वाद के कारण लोग बड़े शौक से बोड़ा खरीद कर खाते है। बोड़ा बेचने वालों को जबरदस्त फायदा हो जाता है