इस बीमारी से किसानों की चिंता बढ़ गई है। किसान कृषि विभाग का चक्कर लगाने के अलावा विभाग के अधिकारी कर्मचारियों के पास रोज मोबाइल से संपर्क कर बीमारी की जानकारी देकर समाधान मांग रहे। कृषि विभाग वाट्सएप, फेसबुक व एप के माध्यम से इस मकड़ी के प्रकोप के विषय में जानकारी दे रहे हैं। कृषि विभाग के उपसंचालक राजीव श्रीवास्तव ने बताया कि इस पेनिकल माइट नामक मकड़ी लंबे समय से अनुसंधान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अत्यधिक प्रकोप होने पर फसल नुकसान की आशंका काफी बढ़ जाती है।
प्रोपिकोनाजोल का छिड़काव खेतों में करें कीट वैज्ञानिक पेनिकल माइट से बचाव के लिए मकड़ी नाशक डाइकोफॉल 600 मिली/एकड़ तथा फफूंदनाशक प्रोपिकोनाजोल 200 मिली/एकड़ छिड़काव की सलाह देते हैं। दवाओं का छिड़काव गभोट से लेकर अधिकतम 5 प्रतिशत बाली अवस्था तक कर देना चाहिए। बाद में दवाओं के छिड़काव का महत्व कम हो जाता है।
– पेनिकल माइट सूक्ष्म मकड़ी पेनिकल माइट सूक्ष्म मकड़ी है, जिसे नग्न आंखों से देखा नहीं जा सकता है। यह धान फसल में गभोट के समय ही बालियों से रस चूस लेती है, जिससे बाली निकलने पर धानों में दूध भराव नहीं हो पाता और वे लाल-कत्थई रंग के हो जाते हैं व दानों में बदरा के रुप में विकसित होते हैं। पूर्व में पेनिकल माईट का प्रकोप धान किस्मों जैसे – कर्मा मासूरी, सांभा (बीपीटी 5204), स्वर्णा, महामाया, एमटीयू 1001 एवं एचएमटी किस्मों पर ही होता था, लेकिन खरीफ तथा रबी धान किस्म एमटीयू 1010, ओम-3, बाहुबली, संकर किस्मों, संकर बीजोत्पादन किस्मों में भी अब देखा जा रहा है।
– वर्जन धान के फसलों में इन दिनों माहू व शूट ब्लाइट के अलावा नए बीमारी पेनिकल माइट मकड़ी का प्रकोप दिख रहा है। किसानों को बीमारियों के रोकथाम के लिए सलाह दी जा रही है।- राजीव श्रीवास्तव
उप संचालक, कृषि विभाग