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जबलपुर

 अनोखी परंपरा: पति की सलामती के लिए महिलाएं बनती हैं विधवा

हर जगह इसे मानते हैं अपशगुन तो गोरखपुर के लिए है शगुन

जबलपुरSep 02, 2016 / 03:24 pm

neeraj mishra

Tradition, the husband's safety

Tradition, the husband’s safety


बालमीक पाण्डेय @ जबलपुर। देश विविधताओं से अटा पड़ा है। सांस्कृतिक, धार्मिक, पारंपरिक सहित भारत में कई विविधताएं देखने मिलती है। देश में आज भी कुछ ऐसी परंपराएं जीवित हैं जो हम सभी को अचरज में डालती हैं। इसे सुनकर लोग न सिर्फ हतप्रभ रह जाते हैं बल्कि इन्हें गलत भी ठहराते हैं। ऐसी ही एक परंपरा हम आपको बताने जा रहे हैं जहां पति की सलामती के लिए महिलाओं को विधवा का जीवन जीना पड़ता है। यह परंपरा गछवाह समुदाय से जुड़ी है। यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है। ताड़ी के पेशे से जुड़े इस समुदाय की क्षेत्र में बहुतायत है। इस बात की जानकारी जबलपुर नर्मदा स्नान करने पहुंचीं गछवाह समुदाय की महिलाओं ने दी।

नहीं भरती मांग में सिंदूर
जानकारी अनुसार इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है। ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते हैं तथा एकदम सपाट होते हैं। इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है। ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन-भादों मास तक किया जाता है। गछवाह महिलाएं इन चार महीनों में ना तो मांग में सिंदूर भरती हैं और ना ही कोई श्रृंगार करती हैं। वे अपने सुहाग कि सभी निशानियां तरकुलहा देवी के पास गहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है।


नागपंचमी को खत्म होता है व्रत
बता दें कि तरकुलहा देवी गछवाहों कि इष्ट देवी है। तरकुलहा देवी का मंदिर गोरखपुर से 20 किलोमीटर कि दूरी पर है। यह हिन्दुओं का एक प्रमुख धार्मिक स्थल है। गछवाह महिलाएं चैत महीने की राम नवमी से लेकर सावन कि नागपंचमी तक इसी तरह रहती हैं। ताड़ी का काम खत्म होने के बाद सारे गछवाह नाग पंचमी के दिन तरकुलहा देवी के मंदिर में इक_े होते हैं। गछवाह महिलाएं तरकुलहा देवी की पूजा करने के बाद अपनी मांग भरती हैं। पूजा के बाद सामूहिक गोठ का आयोजन होता है। इस पूजा में पशु बलि देने का भी रिवाज है।

 the husband

नर्मदा में करने पहुंची स्नान
शुक्रवार को गछवाह समुदाय के लोग जबलपुर मां नर्मदा में स्नान करने के लिए पहुंचे। गछवाह समुदाय की सावित्री बाई, रोजमति बाई, रमधुनिया बाई ने बताया कि वे आज नर्मदा स्नान के बाद मैहर जाएंगी। मां शारदा के दर्शन के उपरांत वे गांव लौटेंगी। सावित्री ने बताया कि यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है। पति की सलामती के लिए उन्हें यह करने में बिल्कुल भी अटपटा नहीं लगता।


परंपरा का कर रहे निर्वहन
गछवाहों में यह परंपरा कई पीढिय़ों से चली आ रही है। अधिकतर गछवाहों का समुदाय परंपरा के बारे में अपने पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं। वैसे तो हिंदू धर्म में किसी महिला के द्वारा अपने सुहाग चिह्न को छोडऩा अपशगुन माना जाता है पर गछवाहों में इसे शुभ माना जाता है।

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