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जबलपुर

धर्म महामंडल की सहमति: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ही होंगे ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य

पहले भी द्वारिकापुरी के साथ ज्योतिषपीठ के भी शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

जबलपुरNov 25, 2017 / 09:21 pm

Premshankar Tiwari

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जबलपुर/गोटेगांव। जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ही ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य होंगे। श्री भारत धर्म महामंडल वाराणसी द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार सर्व सम्मति से यह निर्णय तीनों पीठों के शंकराचार्य, विद्वानों, पंडितों, संन्यासियों ने लिया है। उल्लेखनीय है कि एक याचिका के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्योतिष पीठ बद्रीकाश्रम को रिक्त घोषित किया था। इसको भरने का दायित्व धार्मिक संस्थाओं को सौंपा गया था। सभी ने सर्वसम्मति से ज्योतिष मठ पर शंकराचार्य के रूप में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को चुना है। इस निर्णय से शंकराचार्य शिष्य मंडल में खुशी का माहौल है।

पहले भी थे स्वामी स्वरूपानंद
जानकार सूत्रों के अनुसार शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती पहले भी द्वारिका पीठ के साथ ज्योतिषपीठ के भी शंकराचार्य थे। उन्हें वर्ष १९७३ में ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बनाया गया था।
तत्कालीन शंकराचार्य ने उन्हें ज्योतिष पीठ का कार्यभार सौंपा था। बाद में वसीयत के आधार पर शांतानंद फिर वासुदेवानंद यहां के शंकराचार्य बन गए। ज्योतिषपीठ के दो शंकराचार्य थे। इस बात को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट में केस चला। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य विवाद के इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती और स्वामी वासुदेवानन्द दोनों को इस पीठ का शंकराचार्य मानने से इनकार करते हुए उनका दावा खारिज कर दिया था। उल्लेखनीय है कि स्वामी वासुदेवानंद भी करीब 27 वर्षों तक ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य पद रहे, लेकिन साल 2015 में इलाहाबाद की जिला अदालत से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था। इसके बाद उन्होंने अदालत का दरवाज़ा खट्खटाया था।

 

हाईकोर्ट ने दी थी यह व्यवस्था
सुनवाई के दौरान इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वामी स्वरुपानंद और स्वामी वासुदेवानंद दोनों संतों की इस पद पर नियुक्ति को गलत माना था। डिवीजन बेंच ने तीन महीने में परंपरा के मुताबिक नया शंकराचार्य चुनने को कहा था। कहा गया था कि बाकी तीनों पीठो के शंकराचार्य, काशी विद्वत परिषद और श्री भारत धर्म सभा मंडल मिलकर तय करेंगे नया शंकराचाय कौन होगा? इसके बाद आगामी तीन महीने तक यथा स्थिति के निर्देश दिए गए थे। श्री भारत धर्म महामंडल वाराणसी द्वारा जारी विज्ञप्ति के अनुसार अब तीनों पीठों के शंकराचार्य, विद्वानों, पंडितों, संन्यासियों ने स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य चुना है।


ये था विवाद
गौरतलब है कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित चार पीठों में एक उत्तरखंड के जोशीमठ की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर विवाद देश की आज़ादी के समय से ही शुरू हो गया था।1960 से यह मामला अलग- अलग अदालतों में चला। 1989 में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के गद्दी सँभालने के बाद द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने उनके खिलाफ इलाहाबाद की अदालत में मुकदमा दाखिल किया और उन्हें हटाये जाने की मांग की थी। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद इलाहाबाद की डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में करीब तीन साल पहले इस मामले की सुनवाई डे-टू-डे बेसिस पर शुरू हुई थी।

निचली अदालत में दोनों तरफ से करीब पौने दो सौ गवाहों को पेश किया गया था. ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य की पदवी को लेकर करीब सत्ताईस साल तक चले मुक़दमे में इलाहाबाद की जिला अदालत ने साल 2015 की पांच मई को स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के हक़ में अपना फैसला सुनाया था और 1989 से इस पीठ के शंकराचार्य के तौर पर काम कर रहे स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की पदवी को अवैध करार देते हुए उनके काम करने पर पाबंदी लगा दी थी।

इलाहाबाद जिला अदालत के सिविल जज सीनियर डिवीजन गोपाल उपाध्याय की कोर्ट ने 308 पेज के फैसले में स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती की वसीयत को फर्जी करार दिया था। निचली अदालत के इस फैसले के खिलाफ स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने हाईकोर्ट में अपील दाखिल की थी। इस बीच शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने भी हाईकोर्ट में अर्जी दाखिल कर मामले का निपटारा जल्द किये जाने की अपील की थी। अपनी अर्जी में उन्होंने कहा था कि उनकी उम्र ९३ साल हो गई है, इसलिए वह चाहते हैं कि उन्हें इस मामले में जीते जी इंसाफ मिल जाए। अंतत: श्री भारत धर्म महामंडल वाराणसी का निर्णय उनके पक्ष में आया।

शंकराचार्य से जुड़े तथ्य
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितम्बर 1924 को मध्य प्रदेश राज्य के सिवनी जिले में जबलपुर के पास दिघोरी गांव में ब्राह्मण परिवार में पिता श्री धनपति उपाध्याय और मां श्रीमती गिरिजा देवी के यहां हुआ। माता-पिता ने इनका नाम पोथीराम उपाध्याय रखा। नौ वर्ष की उम्र में उन्होंने घर छोड़ कर धर्म यात्रायें प्रारम्भ कर दी थीं। इस दौरान वह काशी पहुंचे और यहां उन्होंने ब्रह्मलीन श्री स्वामी करपात्री महाराज वेद-वेदांग, शास्त्रों की शिक्षा ली। यह वह समय था जब भारत को अंग्रेजों से मुक्त करवाने की लड़ाई चल रही थी। जब 1942 में अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा लगा तो वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े और 19 साल की उम्र में वह ‘क्रांतिकारी साधु’ के रूप में प्रसिद्ध हुए। इसी दौरान उन्होंने वाराणसी की जेल में नौ और मध्यप्रदेश की जेल में छह महीने की सजा भी काटी। वे करपात्री महाराज की राजनीतिक डाल राम राज्य परिषद के अध्यक्ष भी थे। 1950 में वे दंडी संन्यासी बनाये गए और 1981 में शंकराचार्य की उपाधि मिली। 1950 में ज्योतिष्पीठ के ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती से दण्ड-सन्यास की दीक्षा ली और स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती नाम से जाने जाने लगे।

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