scriptshiv temple: त्रिशूलभेद में मिली थी भगवान शिव के त्रिशूल की खोई शक्ति, किया था अंधकासुर का वध | shiv temple: The lost power of Lord Shiva's trident was found in Trishul Bheda | Patrika News
जबलपुर

shiv temple: त्रिशूलभेद में मिली थी भगवान शिव के त्रिशूल की खोई शक्ति, किया था अंधकासुर का वध

shiv temple: त्रिशूलभेद में मिली थी भगवान शिव के त्रिशूल की खोई शक्ति, किया था अंधकासुर का वध, पौराणिक शिवालय में रुद्राभिषेक के लिए लग रहा है भक्तों का जमावड़ा, मंदिर में मिलती है अद्भुत शांति

जबलपुरAug 03, 2024 / 03:27 pm

Lalit kostha

shiv temple

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shiv temple: शिव तनया नर्मदा का कण-कण शंकर माना जाता है। यही वजह है कि नर्मदा तट पर अनेक प्राचीन शिवालय स्थित हैं। संस्कारधानी से 20 किमी दूर त्रिशूल भेद में ऐसा ही पौराणिक और ऐतिहासिक शिवालय है। शहरी कोलाहल और शोर -शराबे से दूर नर्मदा के दक्षिणी किनारे पर स्थित मंदिर में ऐसा लगता है मानो हिमालय या कैलाश जैसे शांत शिवमय स्थल पर आ गए हैं।
Shiva Temple
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shiv temple: पौराणिक शिवालय में रुद्राभिषेक के लिए लग रहा है भक्तों का जमावड़ा, मंदिर में मिलती है अद्भुत शांति

खास बात यह कि त्रिशूल भेद में लकड़ी तो बह जाती है, लेकिन कोयला डूब जाता है। शिवपुराण के अनुसार अंधकासुर का वध करने के बाद भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल की शक्ति क्षीण हो गई थी। यहीं नर्मदा की धारा में धोने के बाद ही वापस आई थी। तब से इस स्थल का नामकरण त्रिशूलभेद हुआ। दुर्गम स्थल होने के बावजूद सावन में शिवालय में भोलेनाथ के दर्शन, पूजन के लिए बड़ी संया में भक्त पहुंच रहे हैं।
shiv temple: यहीं धोया था त्रिशूल

अपने त्रिशूल को फिर से शक्तियां देने के लिए भगवान शंकर उसे सभी शुभ जगहों पर ले गए। इसी बीच शिव नर्मदा किनारे और रक्त रंजित त्रिशूल को नदी में धोया और उसकी सभी पूर्व शक्तियां मिल गईं। इसी वजह से इस स्थान को त्रिशूल भेद कहा जाता है।
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shiv temple: त्रिशूल ने किया वरदानी असुर का वध

गिरिजानंद सरस्वती के अनुसार शिव पुराण में इस मंदिर का उल्लेख है। कथा के अनुसार अंधकासुर नामक राक्षस की तपस्या से खुश होकर भगवान शिव उसे अमरता का वरदान देते हैँ। वरदान के कारण भगवान शिव भी उसको मार नहीं सकते थे। काफी विचार के बाद भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल को अंधकासुर को मरने के लिए कहा। त्रिशूल ने शिव से कहा कि यदि वह अंधकासुर को मारता है तो अपनी सभी दिव्य शक्ति खो देगा। फिर भी त्रिशूल आगे बढ़ा और अंधकासुर को मार डाला।
shiv temple: शहरी कोलाहल से दूर

यह खूबसूरत और प्राचीन मंदिर जबलपुर के शहरी कोलाहल से दूर आज भी अनदेखा और अनछुआ लगता है। त्रिशूल भेद के पुजारी संगीत पांडे बताते हैं कि यहां सावन मास में रुद्राभिषेक का महत्व है। यहां पहुंचने का दुर्गम मार्ग भक्तों को ऊर्जा व आस्था से भर देता है।
shiv temple: अस्थियों के साथ डूब जाता है कोयला

त्रिशूल भेद में अनोखा दृश्य देखने मिलता है। वैसे तो लकड़ी का कोयला हल्का व सरंध्र होता है। यह भी लकड़ी की तरह पानी पर तैरता है। लेकिन यहां अस्थियों के साथ विसर्जित होने वाला हल्का कोयला भी मां नर्मदा के गर्भ में समा जाता है। पितृकर्म के लिए भी विद्वान त्रिशूल भेद को उत्तम स्थल मानते हैं।

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