scriptswami swaroopanand saraswati- 15 माह की सजा काट चुके है शंकराचार्य, वाराणसी जेल में थे बंद, जानिए क्या था मामला | Shankaracharya Swaroopanand was closed for 9 months in Varanasi jail | Patrika News
जबलपुर

swami swaroopanand saraswati- 15 माह की सजा काट चुके है शंकराचार्य, वाराणसी जेल में थे बंद, जानिए क्या था मामला

इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश के पहले द्वारिका के साथ ज्योतिष पीठ के भी थे शंकराचार्य, साधु बनने से पहले थे पोथीराम

जबलपुरSep 23, 2017 / 10:01 am

deepankar roy

Mukesh Ambanis son Anant Ambani reached Shardapitham and meet swami swarupanandji

Mukesh Ambanis son Anant Ambani reached Shardapitham and meet swami swarupanandji

जबलपुर। ज्योतिष पीठ की गद्दी को लेकर स्वरूपानंद सरस्वती और वासुदेवानंद सरस्वती के बीच 28 साल से जारी विवाद समाप्त हो गया। इसके बाद स्वरूपानंद अब सिर्फ द्वारिका के शंकराचार्य रहेंगे। इससे पहले वे द्वारिका के साथ ही ज्योतिष पीठ के भी शंकराचार्य थे। ये पहला अवसर नहीं है जब स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को मुकदमे बाजी झेलना पड़ा होगा। वे बचपन से ही विद्रोही स्वभाव के थे। उनके इस स्वभाव के कारण वे करीब 15 माह जेल की सजा काट चुके है। वे करीब 9 माह वाराणसी की जेल में बंद रह चुके है। मध्यप्रदेश में भी करीब 6 माह जेल की हवा खा चुके है।
माता-पिता ने दिया था यह नाम
स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म मध्यप्रदेश के एक कुलीन ब्राम्हण परिवार में २ सितंबर, १९४२ हुआ। उनके पता धनपति उपाध्याय और मां का नाम गिरिजा देवी है। बचपन से ही उनका धर्मग्रंथ और पुस्तकों के प्रति रूझान को देखते हुए माता-पिता ने पोथीराम नाम दिया। साधु बनने से पहले उन्हें लोग पोथीराम के नाम से पहचानते थे। 8 वर्ष की अल्पआयु में ही उन्होंने धर्मजागरण का कार्य शुरू कर दिया था।
एक संत की वसीयत पर खुद को शंकराचार्य घोषित किया
स्वरूपानंद सरस्वती को वर्ष १९५० में ज्योतिषपीठ के शंराचार्य स्वामी ब्रम्हानंद सरस्वती जी महाराज द्वारा दंडी सन्यासी की शिक्षा दी गई और वे स्वामी स्वरूपानंद नाम से पहचाने जाने लगे। उन्हें अप्रैल १९८४ में द्वारका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य की उपाधी मिली। उत्तराखंड की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य विष्णुदेवानंद के निधन के बाद 1989 में विवाद पैदा हुआ। 8 अप्रैल, 1989 को ज्योतिषपीठ के वरिष्ठ संत कृष्ण बोधाश्रम की वसीयत के आधार पर स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने खुद को शंकराचार्य घोषित कर दिया।
और फिर गए जेल
स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती बचपन में ही काशी चले गए। जहां, उन्होंने स्वामी हरिहरानंद जी करपात्री महाराज से वेद-वेदांग, न्याय और उपनिषद शास्त्र की शिक्षा प्राप्त की। यह वह दौर था जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन तेज हो गया था। उनके विद्रोही स्वभाव के कारण वे स्वयं को स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागिता करने से रोक नहीं पाए और वर्ष १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता के कारण उन्हें एक क्रांतिकारी साधु के रूप में पहचाना गया। आजादी की लड़ाई में वे 9 महीने वाराणसी और करीब 6 महीने मध्यप्रदेश की जेल में बंद रहे।

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