अजय खरे@जबलपुर। संस्कारधानी की फिजा में संगीत गूंजता है। यहां की जीवनदायिनी नर्मदा नदी की लहरों की ताल भी जैसे अपना अद्भुत संगीत पैदा करती है। नर्मदा के किनारों पर यहां के स्थानीय सुर साधकों को रियाज करते देखा जा सकता है। यह शहर पंचम दा के संगीत का दीवाना है। एक माह पूर्व मानस भवन में पत्रिका द्वारा आयोजित यादें सीजन टू… याद न जाए बीते दिनों की कार्यक्रम में पंचम दा के सुर संगीत में पिरोये गए गीतों ने श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया था।
किशोर कुमार की जन्म और पुण्य तिथि पर आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में किशोर की आवाज के साथ पंचम दा का संगीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है। किशोर की आवाज में गाने वाले यहां करीब आधा दर्जन गायक हैं जो पंचम दा द्वारा संगीतबद्ध किशोर के गानों की प्रस्तुतियां देते हैं। इनमें से कुछ प्रोफेशनल हैं तो कुछ शौकिया तौर पर गाते हैं। इनमें से सभी कलाकार जबलपुर के स्थानीय ऐसे आर्केस्ट्रा ग्रुप से जुड़े हुए हैं जो मुंबई में होने वाले संगीत कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता दर्ज कराते हैं।
पत्रिका के आयोजन में गूंजे थे पंचम दा के स्वर
बीते मई माह में पत्रिका यादें सीजन टू में पंचम दा के संगीतबद्ध कई गानों की शानदार प्रस्तुतियों ने संगीत प्रेमी श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया था। सोनी टीवी के के फॉर किशोर चैंपियन अनिल श्रीवास्तव ने किशोर की आवाज में जब पंचम दा के संगीत में पगे गीत गाए तो मानस भवन पंचम मय हो गया था। पत्रिका द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में अनिल ने पंचम दा के संगीत वाली कटी पतंग फिल्म के अलावा कई गीतों की शानदार प्रस्तुति दी थी।
(पंचम दा के संगीत वाले किशोर के गानों की प्रस्तुति देते अनिल श्रीवास्तव)
अद्वितीय संगीतकार थे पंचम दा
पंचम दा को संगीत विरासत में मिला था, उनके पिता एसडी बर्मन उस समय के स्थापित संगीतकार थे। शैशव काल में आरडी के पंचम स्वर में रोने के कारण उनका नाम पंचम पड़ा और फिर वे संगीत के क्षेत्र में पंचम दा के नाम से विख्यात हुए। उनका जन्म 27 जून 1939 को कोलकाता में हुआ था। करीब 54 वर्ष की आयु में 4 जनवरी 1994 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। कहा जाता है कि 1969 की सुपर डुपर हिट फिल्म आराधना का संगीत एसडी बर्मन के नाम है पर वास्तव में उसकी संगीत रचना आरडी बर्मन की थी। पंचम द्वारा स्वरबद्ध कटी पतंग फिल्म के गीतों ने धूम मचा दी थी और वे रातों रात म्यूजिक वल्र्ड के शहंशाह बन गए थे। 1942 ए लव स्टोरी उनकी सुर साधना के सफर की अंतिम प्रस्तुति मानी जाती है।
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