जबलपुर। वह तीर थी तलवार थी, भालों व तोपों का वार थी। फुफकार थी, हुंकार थी, शत्रु का संहार थी। गोंडवाना की रणचंडी, दुर्गावती भवानी थी। व्यूह रचना में दक्ष साम्राज्ञी ने अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए अकबर की सेना को युद्ध के मैदान में तीन बार धूल चटाई थी। मुगल सम्राट अकबर मध्यभारत में अपने पैर जमाना चाहते थे। उन्होंने रानी दुर्गावती के पास इसका प्रस्ताव भेजा, साथ ही ये चेतावनी भी रानी के पास भिजवाई की अगर ऐसा नहीं किया तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। रानी दुर्गावती ने उसकी एक बात नहीं मानी और युद्ध किया। जब रानी को लगा कि अब वह युद्ध नहीं जीत सकतीं और घायल हो गईं तो अपनी कटार को छाती में घुसा कर जान दे दी। 24 जून रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर mp.patrika.com आपको उस स्थान की ओर ले जा रहा है जहां रानी ने शत्रुओं से युद्ध करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया।
यह स्थान आज भी जबलपुर शहर में स्थित है जहां रानी ने आत्म बलिदान दिया था। इसे नर्रई के नाम से जाना जाता है। इतिहासकारों के अनुसार रानी की हार का कारण उनके ही विश्वासपात्र की दगाबाजी थी। बदन सिंह ने रात में शिखर सरोवर का तट खुदवा दिया था। सरोवर का पानी नाले में आने से आ गई थी बाढ़, जो रानी की पराजय का कारण बनी। घटना 24 जून 1564 की है। आसफ खां से युद्ध करते समय रानी घायल होकर यहां पहुंची। लेकिन मुगल सेना के सामने आत्म समर्पण न करना पड़े इसलिए सीने में कटार मारकर आत्म बलिदान दे दिया। वर्तमान में समाधि पर रानी की पत्थर की प्रतिमा स्थापित है, पहले यहां आने-जाने वाला हर राहगीर एक छोटा पत्थर चढ़ाता था।
कालिंजर दुर्ग में ही दुर्गाष्टमी के दिन कीरत सिंह चंदेल के घर इकलौती कन्या का जन्म 5 अक्टूबर 1524 में हुआ। जिसका नाम दुर्गावती रखा गया। दुर्गावती अत्यंत रूपवान और शिकार में दक्ष राजकन्या थी। वीरांगना को युद्ध कौशल, शौर्य और पराक्रम के कारण गढ़ मंडला की सिंहनी भी कहा जाता है। 1542 में उनका विवाह राजा दलपत शाह से हुआ। राजा शाह के निधन के बाद रानी ने अपने तीन साल के बेटे वीर नारायण को सिंहासन पर बैठाकर उसके संरक्षक के तौर पर स्वयं शासन किया। इस दौरान उन्होंने अपने राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए तीन बार मुगल सेना से युद्ध किया और अपने जीवित रहते अकबर के सैनिकों के मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया। 24 जून 1564 को वे युद्ध करते हुए उन्होंने वीर गति प्राप्त की।
रानी के नाम पर शहर में
-रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय।
-रानी दुर्गावती अस्पताल।
-रानी दुर्गावती संग्रहालय।
-रानी दुर्गावती कीर्ति स्तंभ स्थापित।
-रानी दुर्गावती पर डाकचित्र निकाला।
-रानी दुर्गावती अभयारण्य स्थापित।
-रानी दुर्गावती महिला पुलिस बटालियन स्थापित।
-रानी दुर्गावती पर अब तक कई पीएचडी हो चुकी हैं।
-रानी दुर्गावती पिंक वाहन।
Hindi News / Jabalpur / 24 जून: अब भी यहां मौजूद है वह नाला, जहां ‘दुर्गावती’ ने खुद को घोंपी थी कटार