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जबलपुर

@पंडित रविशंकर: सितार के जादू में घुंघरुओं की झंकार

भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने और उसे एक अलग पहचान दिलाने वाले सितार वादक पंडित रविशंकर का आज 96 वां जन्मदिन है।

जबलपुरApr 07, 2016 / 11:52 am

Lali Kosta

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जबलपुर। भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने और उसे एक अलग पहचान दिलाने वाले सितार वादक पंडित रविशंकर का आज 96 वां जन्मदिन है। उनके चाहने वालों में शहर के संगीत, नृत्य एवं कला प्रेमी शामिल हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों में हैं।

संगीत प्रेमी जहां उनके सितारों के सुरों से आज भी आनंद की अनुभूति कर रहे हैं, वहीं संगीत की शिक्षा देने वाले उन्हें अपना आदर्श मानते हैं। नृत्य क्षेत्र से जुड़े लोग भी पंडित रवि शंकर द्वारा बजाई गई सितार की धुनों पर थिरकने को मजबूर हो जाते हैं।


मेरे सितार का हर सुर पंडित जी को समर्पित
निजी कॉलेज में संगीत शिक्षक एवं संगीत की क्लास संचालित करने वाले डॉ. प्रीति श्रीवास्तव ने बताया कि जब वे संगीत सीख रहीं थीं तब उन्हें सितार की धुनें बड़ी अच्छी लगा करती थीं। जब पहली बार पंडित रविशंकर को सुना तो उनकी फैन हो गई और उन्हें आदर्श मान लिया। आज भी मेरे सितार से जो धुन और सुर निकलते हैं वे उन्हें समर्पित होते हैं। मैं हर स्टूडेंट को पंडित जी से प्रेरणा लेने की बात कहती हूं।


हर धुन में थिरकने को मजबूर हो जाते हैं
राष्ट्रीय स्तर पर नृत्य प्रस्तुतियां दे चुकीं अंशुल विश्वकर्मा का मानना है कि सितार की धुनों पर कदमों की लय ताल को बैठाना आसान नहीं होता है, लेकिन यू ट्यूब व सीडी के माध्यम से जब पंडित रविशंकर को सुनते हैं तो कमद खुद ब खुद थिरकने को मजबूर हो जाते हैं। इसके साथ ही जब भी थकान या तनाव महसूस करती हूं तब मोबाइल पर पंडित जी के सितार को सुन लेती हूं। 

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नृत्य करना था, पर वादक बन गए
भारतीय शास्त्रीय संगीत के पितामह पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल 1920 को वाराणसी में हुआ। 1992 में उन्हें भारत के सबसे बड़े सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया। पंडित रविशंकर ने नृत्य के जरिए कला जगत में प्रवेश किया था। उन्हें पूरी दुनिया में शास्त्रीय संगीत में भारत का दूत माना जाता था। पंडित रविशंकर का 92 साल की उम्र में 12 दिसंबर 2012 को सैन डिएगो के एक अस्पताल में निधन हो गया। 

एक-दूसरे के पर्याय बन गए
पंडित रविशंकर अपने बड़े भाई उदयशंकर की तरह नृत्यकला की ऊंचाइयां छूना चाहते थे। उन्होंने युवा अवस्था में अपने भाई के नृत्य समूह के साथ यूरोप और भारत में दौरा भी किया। अठारह साल की उम्र में पंडितजी ने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू कर दिया। पं. रविशंकर उस्ताद अलाउद्दीन खां से सितार की दीक्षा लेने मैहर पहुंचे और खुद को उनकी सेवा में समर्पित कर दिया। उन्होंने अपनी प्रतिभा से गुरु का नाम विश्वभर में ऊंचा किया। सितार और पं. रविशंकर एक-दूसरे के पर्याय बन गए।

भारत रत्न और पद्मविभूषण से नवाजे गए
उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाया। विश्वभर में प्रसिद्ध बैंड बिटल्स के साथ भी उन्होंने सितार बजाया। भारतीय संगीत को दुनिया भर में सम्मान दिलाने वाले भारत रत्न और पद्मविभूषण से नवाजे गए पंडित रविशंकर को तीन बार ग्रैमी पुरस्कार से भी नवाजा गया था। 1986 से 1992 तक वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे।

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