जबलपुर हाईकोर्ट ने जनजातीय कार्य विभाग में एससी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस के मेधावी यानि मेरिटोरियस टीचर्स को उनके पसंदीदा स्कूलों और जिलों में भेजने का आदेश दिया है।इसके लिए 30 दिन की समय सीमा भी तय की गई है।
प्रदेश के दो दर्जन से अधिक प्राइमरी टीचर्स ने पिछले साल याचिकाएं दायर की थीं। याचिका में बताया गया कि मेरिट में आने के कारण अनारक्षित वर्ग केटीगरी बदलकर जनजातीय कार्य विभाग के स्कूलों में पोस्टिंग कर दी गई जबकि कम अंक वाले टीचर्स को उनके पसंदीदा स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों में पोस्टिंग दी गई। सुनवाई के बाद जस्टिस संजीव सचदेवा और जस्टिस विनय सराफ की खंडपीठ ने 24 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
हालांकि राज्य सरकार हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी लगाने की तैयारी कर रही है। दरअसल कोर्ट के आदेश पर अमल से जनजातीय कार्य विभाग में टीचर्स के कई पद खाली हो सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं के अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग ने प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020-23 में चयनित आरक्षित वर्ग के टीचर्स की मेरिट अनारक्षित वर्ग में बदलकर उन्हें जनजातीय कार्य विभाग के स्कूलों में पदस्थ कर दिया जबकि उन्होंने स्कूल शिक्षा विभाग के स्कूलों का चयन किया था। इस तरह याचिकाकर्ताओं के लिए मेरिट में उच्च स्थान प्राप्त करना वरदान की बजाए अभिशाप बन गया।
सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में स्पष्ट कहा है कि आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार यदि मेरिट में उच्च स्थान प्राप्त करता है तो उसे आरक्षित वर्ग में नहीं गिना जाएगा। ऐसे उम्मीदवारों की प्रथम वरीयता क्रम में अनारक्षित वर्ग में पोस्टिंग की जाएगी।