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जबलपुर

kargil vijay diwas 2019 : जंग जीतने का था जुनून, दुश्मन को चटा दी धूल

kargil vijay diwas 2019 : जंग जीतने का था जुनून, दुश्मन को चटा दी धूल

जबलपुरJul 26, 2019 / 01:17 am

abhishek dixit

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जबलपुर. उस वक्त दि ग्रेनेडियर्स रेजीमेंटल सेंटर जबलपुर से ट्रेनिंग ली थी। फौज में केवल तीन साल हुए थे। करगिल वार में हमारी यूनिट को मोर्चे पर बुलाया गया। जुलाई के दूसरे सप्ताह हम करगिल पहुंच गए। दुश्मन एक के बाद एक बमबारी और गोलीबारी कर रहे थे लेकिन हमारे जवान भी कहां पीछे हटने वाले थे, उन्होंने घुसपैठियों को ढेर कर दिया। उस वक्त सभी के मन में केवल जंग जीतने का जुनून सवार था सेना में सूबेदार मेजर रहे रिचपाल सिंह ने करगिल युद्ध की उन घटनाओं का स्मरण किया, जिन्हें उन्होंने नजदीक से देखा।

उन्होंने बताया कि घाटी में दुश्मनों की गोली से एक साथी ने जान गवां दी थी। जहां मैं खड़ा था, ठीक उसके ऊपर एक भारतीय जवान था, जिसके माथे पर गोली लगी और उसने तुरंत दम तोड़ दिया। मेरे बगल वाले एक अन्य जवान के कंधे पर गोली लगी थी, वह गम्भीर रूप से घायल हो गया था। ऐसी घटना से कभी पाला नहीं पड़ा। डर किसी के मन में नहीं था। हर फौजी चाहता था कि दुश्मनों को जल्दी से खदेड़ा जाए। उन्होंने बताया कि जीआरसी जबलपुर से ट्रेनिंग लेने के बाद वे 16 जीआरसी द्रास सेक्टर में पदस्थ हुए। मूलत: जम्मू कश्मीर के रहने वाले रिचपाल सिंह ने बताया कि करगिल युद्ध का एक-एक पल उन्हें याद है। पूरी वादी सफेद चादर यानि बर्फ से ढंकी थी। लेकिन, बम के बारूद से धुआं भी फैल गया था। आज भी अपने साथियों से मिलता हूं तो उन पलों को हम सभी साझा करते हैं। अभी रानीताल में मप्र तीरंदाजी एकेडमी में भी प्रशिक्षण देते समय खिलाडिय़ों को इस अवगत करवाता हूं। उन साथियों की याद भी आती है जिन्होंने अपनी जान गंवाई।

युद्ध की स्थितियों को करेंगे याद
करगिल युद्ध के 20 वर्ष पूर्ण होने पर भारतीय वरिष्ठ नागरिक एसोसिएशन के सेवानिवृत्त सुरक्षा मजदूर एवं अधिकारी शुक्रवार शाम पांच बजे हरिशंकर परसाई भवन में विजय दिवस मनाएंगे। इस अवसर पर युद्ध के समय आयुध निर्माणियों में बनायी गई युद्ध सामग्री पर किए गए कार्यों का स्मरण किया जाएगा। अध्यक्ष आरएस तिवारी ने बताया कि 1999 में पाकिस्तान के साथ करगिल युद्ध में भारत के सैनिकों ने जीत का परचम लहराया था। बहादुर सैनिकों को गोला-बारूद बनाकर भेजने में सेना का चौथा अंग कहे जाने वाले सुरक्षा संस्थानों के मजदूरों ने गोला-बारूद की समय पर आपूर्ति की थी। इसलिए उनका योगदान भी बड़ा था। इसका स्मरण कार्यक्रम में किया जाएगा।

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