सोहागपुर। 15 जनवरी 2014 की सुबह। करीब पौने आठ बजे का समय था। हाथी खरेर कैम्प से कुछ दूरी पर मांसाहारी जीवों की गणना का समय था। हम पैदल पार्क क्षेत्र में भ्रमण पर थे। साथ में दो चौकीदार थे। उसी समय नाले के पास कुछ ताजे निशान दिखाई दिए। मुझे अंदाजा हुआ कि कुछ देर पहले ही यहां तेंदुए ने लोट लगाई है, क्योंकि वहां उसके पगमार्क थे। दो फीट की दूरी पर एक अन्य पगमार्क दिखा। समझ आया कि नर व मादा तेंदुआ साथ में हैं। उन्होंने गुर्राहट से मौजूदगी का अहसास भी करा दिया। पूरी टीम के रोंगटे खड़े हो गए। हमने तय कर लिया कि यहां से निकल जाना चाहिए, क्योंकि मेटिंग के लिए तैयार जोड़ा और शावकों की चिंता में व्याकुल मादा दोनों ही हिंसक हो जाते हैं।
कुछ देर रुकने पर तेंदुओं की गुर्राहट भी सुनाई दी। अहसास हुआ कि मेंटिंग के लिए तैयार जोड़ा कुछ सेकेंड पहले ही लोट वाले स्थान से गया है और सम्भवत: हमारी गंध को ले चुका है। हम सुरक्षित नहीं थे, क्योंकि वे दो थे, तो हम मात्र तीन। हिंसक जोड़े से सामना होने का अंदाजा सिहरन पैदा कर रहा था। हम तत्काल खरेर कैम्प की ओर तेज गति से चलते गए। इस दौरान हम बार-बार आस-पास देखते जा रहे थे कि कहीं दो जोड़ी आंखें हमारा पीछा तो नहीं कर रही हैं।
– जैसा कि सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में वनरक्षक यशवंत सूर्यवंशी ने सोहागपुर पत्रिका के रिपोर्टर अमित बिल्लौरे को बताया
Hindi News / Jabalpur / Jungle Diary : तेंदुए दिखे नहीं, सिर्फ गुर्राहट से खड़े हो गए रोंगटे