नीरज मिश्र @ जबलपुर। भारत में गणेश प्रतिमा की स्थापना का इतिहास ज्यादा पुराना नहीं है। ब्रिटिश काल में गणेश प्रतिमा रखने का चलन शुरु हुआ। इसकी शुरुवात बाल गंगाधर तिलक ने की थी। उनका उद्देश्य धार्मिक आयोजन से लोगों को जोडऩा था। धीरे-धीर गणेश प्रतिमा की स्थापना पूरे देश में होने लगी। गणेश प्रतिमा की स्थापना और विर्सजन को लेकर धार्मिक ग्रंथों में अलग-अलग तर्क हैं। कहा जाता है वेदव्यास जी ने महाभारत कथा सुनाने के बाद गणेश जी के तेज को शांत करने के लिए उन्हें सरोवर में डुबोया था।
इसलिए हुआ विसर्जन
पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि महर्षि वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से भगवान श्री गणेश को महाभारत की कथा सुनानी प्रारंभ की थी। लगातार दस दिन तक वेदव्यास जी श्री गणेश को कथा सुनाते रहे और गणेश जी कथा लिखते रहे। जब कथा पूर्ण होने के बाद महर्षि वेदव्यास ने आंखें खोली तो देखा कि अत्याधिक मेहनत करने के कारण गणेश जी का तापमान बढ़ा हुआ है। गणेश जी के शरीर का तापमान कम करने के लिए वेदव्यास जी पास के सरोवर में गणेश जी को ले जाते हैं और स्नान कराते हैं। अनंत चर्तुदशी के दिन गणेश जी के तेज को शांत करने के लिए सरोवर में स्नान कराया गया था, इसलिए इस दिन गणेश प्रतिमा का विर्सजन करने का चलन शुरू हुआ।
10 दिन तक लगाते हैं मनपसंद भोग
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश प्रतिमा की स्थापना के बाद उन्हें शांत रखने के लिए 10 दिनों तक उन्हें मनपसंद आहार दिया जाता है। पौराणिक विपिन शास्त्री का कहना है कि इन दस दिनों में गणेश जी की सेवा की जाती है। प्रथम दिन से लेकर अंतिम दस दिन तक मनपसंद आहार, पुष्प चढ़ाए जाते हैं। भगवान श्री गणेश को मोदक पसंद है, इसलिए प्रतिदिन उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है।
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