1965 के दशक में नहीं था पैसा
जानकारी के अनुसार 1965 के दशक में अर्थव्यवस्था चलाने के लिए दक्षिण कोरिया के पास पैसा नहीं थी। उस समय भारत सहित कई देशों ने उसकी आर्थिक मदद की। आज स्थिति यह है कि दक्षिण कोरिया कई देशों को आर्थिक मदद दे रहा है। यह सम्भव हुआ है बेरोजगारी खत्म करके।
कोरिया के स्कूलों में व्यवस्था
– हंसी के साथ कक्षा की शुरुआत
– स्मार्ट क्लासरूम
– सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग
– बच्चों में रचनात्मकता का विकास
– दसवीं कक्षा के बाद वोकेशनल ट्रेनिंग अनिवार्य
– टीचर ओरिएंटेशन ट्रेनिंग प्रोग्राम
– पढ़ाई के साथ हुनर पर भी फोकस
– हर क्लास में डस्टबिन
शहर के स्कूलों में ये होगा प्रावधान
– 2-3 स्कूलों में (प्रत्येक जिले के) में लागू होगा मॉडल
– 2-3 स्मार्ट क्लासरूम होंगे हर स्कूल में
– 9वीं-12वीं तक की पढ़ाई पर रहेगा फोकस
– 3-4 वोकेशनल ट्रेड भी होंगे शुरू
एक नजर कोरिया पर
– 05 करोड़ आबादी है दक्षिण कोरिया की
– 06-15 साल के बच्चों का स्कूल जाना अनिवार्य
– 90 प्रतिशत से अधिक है बच्चों की नामांकन दर
– 45 इंटरनेशनल स्कूलों का संचालन
– 75 फीसदी छात्र पूरी करते हैं हाईस्कूल की शिक्षा
– 80 फीसदी हायर सेकंड्री शिक्षा
– 40 फीसदी छात्र व्यावसायिक पाठ्यक्रम से जुड़े हैं
इन पर रहेगा फोकस : गुड लाइफ, हैप्पी लाइफ, वाइज लाइफ आदि विषयों पर रहेगा फोकस, बुनियादी अध्ययन कौशल, समस्या समाधान, रचनात्मकता और खेल-खेल के माध्यम से शिक्षा पर रहेगा
कोरिया से लौटा दल
स्कूल शिक्षा विभाग ने एसआईएसई, सीटीई, डाइट, मॉडल प्राचार्यों के 35 सदस्यीय दल को दक्षिण कोरिया भेजा गया था। वहां उन्हें स्कूली शिक्षा व्यवस्था में किए गए सुधार को बताया गया। इस दौरान दल ने वहां के सरकारी स्कूलों और विश्वविद्यालयों सहित वोकेशनल प्रशिक्षण केंद्रों को भी देखा। पांच दिवसीय ट्रेनिंग के बाद हाल ही में दल लौटा है। दल में जबलपुर आईएसई, छिंदवाड़ा, रतलाम, इंदौर आदि जिलों से अधिकारी और प्राचार्य शामिल रहे।
12वीं के बाद से सीधे रोजगार
दक्षिण कोरिया में 12वीं कक्षा उत्तीर्ण करने के बाद छात्र अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। क्योंकि वहां शिक्षा के जरिए बच्चों की रचनात्मकता को निखारा जाता है।
700 शिक्षक-प्राचार्य को प्रशिक्षण
अधिकारियों ने बताया कि शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के लिए शुरुआती कदम उठाए जा चुके हैं। इसके तहत प्रदेशभर के 700 शिक्षकों और प्राचार्यों को भोपाल के आईकफ आश्रम और प्रशासनिक अकादमी में चार-पांच दिन का प्रशिक्षण दिया गया है।
हम शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने के साथ बच्चों को रोजगार से जोडऩा चाहते हैं। दक्षिण कोरिया की तर्ज पर प्रदेश में भी काम करने पर गम्भीरता से विचार किया जा रहा है।
– पीआर तिवारी, संयुक्त संचालक, डीपीआई
दक्षिण कोरिया के स्कूलों में बेहतरीन काम हुए हैं। भ्रमण के दौरान वहां काफी कुछ सीखने का मौका मिला। हमने प्लान पर वर्कआउट शुरू कर दिया है।
– आरके स्वर्णकार, प्राचार्य, एसआईएसई