जबलपुर। नर्मदा में बुधवार को अद्भुत पत्थर मिला है। जिसकी आकृति जीवाष्म की तरह है। अलग-अलग प्रकार से देखने पर उसकी आकृति डायनासोर, मोर या अन्य जन्तुओं की तरह दिख रही है। गढ़़ा क्षेत्र के निवासी आरएन शर्मा ने बताया कि ग्वारीघाट में ये पत्थर प्राप्त हुआ है। राज्य पुरात्व विभाग के डिप्टी डायरेक्टर केएल डाभी ने बताया कि इस तरह के पत्थर मिलने की जानकारी है। पत्थर जीवाष्म है या नहीं, इसकी पुष्टि नहीं हो सकी।
जीवाश्म से जबलपुर दुनिया को रूबरू कराया
कुछ साल पहले पुरातत्व विज्ञानियों के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने सींग वाले शाकाहारी डायनासोर की एक नई प्रजाति की पहचान की है। जिसके जीवाश्म की करीब दस साल पहले मोंटाना में खोज हुई थी। कनाडिनयन म्यूजियम ऑफ नेचर में जॉर्डन मैलोन के नेतृत्व वाले दल ने जीवाश्म का वैज्ञानिक विश्लेषण कर डायनासोर की एक नई प्रजाति की पूरी व्याख्या की है। लेकिन पूरे विश्व में खोज का विषय बने डायनासोर के जीवाश्म से जबलपुर दुनिया को रूबरू कराया था। इसके बाद डायनासोर की नई प्रजातियों का पता चलने पर विदेशों से बड़े-बड़े वैज्ञानिक आए और उन्होंने जीवाश्म ढूंढे तथा उनके जीवन पर खोज की।
सन् 1828 में कर्नल स्लीमन ने छावनी क्षेत्र में सबसे पहले डायनासोर के अवशेष ढूंढे थे, तब देश में इस विशालकाय जीव की नई प्रजातियों के बारे में जबलपुर ने ही दुनिया को बताया था। अब शहर के पास उन खोजों की स्मृतियां ही शेष हैं। साइंस कॉलेज स्थित म्यूजियम में आज भी करीब 7 करोड़ साल पुराना डायनासोर का अण्डा आज भी मौजूद है, लेकिन यह पूरी तरह पत्थर हो चुका है।
घोंसले मिले
सूपाताल की पहाडिय़ों पर भी डायनासौर के घोंसले चिह्नित किए गए थे। यहां ऐसे कई निशान मिले हैं, जो डायनासोर के होने की पुष्टि करते हैं। पाटबाबा में भी डायनासौर के घोंसले खोजे गए थे। जिनके निशान अब भी देखे जा सकते हैं।
जीवाश्म इंग्लैण्ड भेजा
जबलपुर की लम्हेटा पहाडिय़ों से मिलने वाले जीवाश्म जांच के लिए इंग्लैण्ड भेजे गए थे। सालों की रिसचज़् के बाद सामने आया कि जबलपुर डायनासोर की नई प्रजातियों को खोजने के लिए विश्व विज्ञान के क्षेत्र में उपयोगी है। विशेषज्ञों के अनुसार नमज़्दा किनारे बसे जंगलों में डायनासौर के होने के प्रमाण मिलते हैं जो जंगलों में ही कई किलोमीटर की यात्रा कर अफ्रीका तक पहुंच जाया करते थे।
कब-कब हुई खोज
-वर्ष 1982 में जबलपुर में डायनासोर के अण्डे होने की जानकारी अशोक साहनी ने दी। उन्होंने कुछ अण्डों के जीवाश्म भी खोजे।
-वर्ष 1988 में अमेरिका से आए वैज्ञानिक डॉ. शंकर चटजीज़् ने सबसे पहले मांसाहारी डायनासोर की खोज की थी। उसका जबड़ा और शरीर के अन्य हिस्सों के कंकाल भी बड़ा शिमला पहाड़ी के तल (जीसीएफ सेंट्रल स्कूल नं.1) पर मिले थे। इसमें 6 फीट लंबी खोपड़ी भी थी।
-वर्ष 1988 के बाद कुछ हड्डियां भी हाथ आईं।
-वर्ष 2001 में पांच बसेरे विभिन्न स्थानों से खोजे गए थे। इनमें से एक में पांच से छ: अण्डे होने की जानकारी भी सामने आई थी।
Hindi News / Jabalpur / नर्मदा में मिला डायनासोर के मुंह का जीवाश्म, पहले से मौजूद है 7 करोड़ साल पुराना अंडा