साधु-संतों का डेरा
नरसिंपुर से करीब 32 किलोमीटर दूर स्थित बरमान मेले के लिए व्यापारियों और रोजगारियों ने पड़ाव डालना शुरू कर दिया है। नर्मदा के टापू पर तरह-तरह के झूले सजने लगे हैं। 14 जनवरी को मेले के शुभारंभ के साथ यहां चहल-पहल बढ़ जाएगी। मेले को लेकर तैयारियां शुरु हो गई हैं। झूले, मनारंजन की अन्य साम्री यहां पहुंचने लगी है। प्रशासन भी मुस्तैद हो गया है। भगवान सूर्य के अयन परिवर्तन के महापर्व पर हजारों श्रद्धालुओं ने यहां मां नर्मदा के शीतल जल में पुण्य की डुबकी लगाएंगे। स्नान, दान के बाद लड्डुओं और पकवानों के जायके का दौर चलेगा। झूलों में किलकारियां गूंजेंगी। स्थानीय रामदास दुबे ने बताया कि बरमान का मेला ऐतिहासिक है। प्राचीन काल से ही यहां इसका आयोजन होता आ रहा है। यहां कई जिलों से स्नान के लिए आते हैं। दूर-दूर से साधु-संत भी आते हैं। मेला एक माह तक लगातार चलता है।
सात अनूठे कुंड
स्थानीय नीरज उपाध्याय के अनुसार बरमान से पहले सतधारा के समीप सात अनूठे कुंड हैं। इनमें अर्जुन कुंड, भीम कुंड, सूरज कुंड और भूत कुंड प्रमुख हैं। बताया जाता है कि ये कुंड प्राकृतिक हैं और सदियों पुराने हैं। इनके निर्माण के संबंध में किसी के भी पास कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है। कुंड अपने आप में अनूठे हैं। जनश्रुति है कि सतधारा में एक रात पांडवों ने मां नर्मदा की धारा को बांधने का प्रयास किया था पर वे असफल रहे। बाद में उन्हें मां नर्मदा की महिमा समझ में आयी और वे नतमस्त हो गए। पांडवों के आगमन के कारण ही कुंडों का नामकरण उनके नाम से हो गया।
ये है भूत कुंड की खासियत
पिपरिया निवासी रानू उपाध्याय और एसके गुप्ता के अनुसार मकर संक्रांति पर्व पर लोग यहां भूत कुंड में भी विशेष तौर पर स्नान करते हैं। मान्यता है कि इस कुंड में नहाने से प्रेत बाधा ठीक हो जाती है। स्थानीय रामजी तिवारी ने बताया कि भूत कुंड का पानी अधिक शीतल और औषधियुक्त है। शायद यही वजह है कि इस कुंड में स्नान करने से कई शारीरिक और मानसिक रोग ठीक हो जाते हैं। चर्म रोगों से भी राहत मिलती है। तिवारी के अनुसार भूत कुंड में स्नान के लिए पूरे देश से लोग आते हैं। संक्रांति के दौरान तो यहां पैर रखने के लिए जगह नहीं बचती है। कुंड के पानी की वैज्ञानिक जांच के लिए भी प्रयास किए जा रहे हैं। इसे आश्चर्य ही माना जाएगा कि यहां नहाने से मानसिक रोग से पीडि़त जनों को राहत मिलती है।
स्वर्ण जैसा पर्वत भी है खास
स्थानीय जनों का मानना है कि यहां मां नर्मदा के तट पर सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रम्हा ने तप किया था,िि इसलए इस स्थान का नाम ब्रम्हांड घाट पर पड़ा। बाद में अपभ्रंशवश यह बरमानघाट हो गया। ऐसा कहा जाता है कि यहां स्थित सूरज कुंड में स्नान करके लोग यहां का जल लेकर बरमान के स्वर्ण पर्वत (टापू) पर स्थित ब्रह्माजी की तपोस्थली दीपेश्वर महादेव मंदिर में जाते हैं। मान्यता है कि इस जल से भगवान महादेव का अभिषेक करने से हर मनोकामना पूरी होती है। सतधारा से लेकर बरमान तक का क्षेत्र नर्मदा का विशेष महत्व वाला एवं भक्ति और शक्ति का क्षेत्र माना जाता है। सतधारा के आसपास तटों पर प्रमुख साधु संतों के आश्रम और देव मंदिर हैं जबकि बरमान ब्रह्मा की तपस्या के कारण तपोभूमि और सिद्ध क्षेत्र माना जाता है। मकर संक्रांति पर लगने वाले यहां के मेले में 2 लाख से ज्यादा श्रद्धालु शामिल होते हैं।