इन बस के बीच क्या आप जानते है कि रिश्तों की डोर से यमराज को भी बांध देने के इस पुनीत पर्व के पीछे एक दर्शन और रहस्य भी छिपा है। शायद कम ही लोग जानते होंगे कि भारतीय मनीषियों ने भाई-बहन के रिश्ते को सदा जीवंत रखने के लिए ही कुछ बड़े पर्वों के बाद भाई दूज की व्यवस्था रखी गई है। इसका उद्देश्य भाई-बहन के स्नेह को सदैव कायम रखना ही है, जो इस पर्व की डोर में सदियों से बंधा हुआ है। आज के भागमभाग के दौर में यह पर्व और भी प्रासंगिक सिद्ध हो रहा है।
कम उम्र हो जाती थी शादी
देश में पहले कम उम्र में ही विवाह की व्यवस्था रही है। गुड्डे-गुडिय़ों से खेलने की उम्र में ही विवाह का बंधन भाई-बहन को एक-दूजे से दूर कर देता था। परिवहन के साधनों का अभाव तो था ही रास्ते भी दुर्गम थे। कहीं ऐसा नहीं हो कि विवाह के बाद बहन और भाई एक दूसरे से बहुत दूर हो जाएं। एक-दूसरे से मिल ही न पाएं। वे पराए जैसे हो जाएं। एक-दूसरे के यहां आ जा ही नहीं पाएं। इसलिए भारतीय मनीषियों ने भाई दूज का दिन रखा गया। इस दिन भाई-बहन का एक-दूसरे से मिलना अनिवार्य नियम बन गया।
एक वर्ष में तीन मौके
हिन्दू परंपरा में चार बड़े पर्व हैं। इनमें रक्षाबंधन , दीपावली, दशहरा और होली शामिल हैं। रक्षाबंधन पर भाई-बहन का ्रस्नेह जग जाहिर है। इस दिन बहनें भाई के घर मेहमानी पर आती हैं। भाई राखी बंधवाकर बहनों को उपहार देते हैं। इसी तरह दीपावली की दोज व होली की दोज को भाई विवाहित बहनों के यहां भी जाते हैं। बहन के हाथों से भोजन ग्रहण करते हैं। इस दिन बहनें भाई को तिलक लगाकर पूजन की सुपारी, नारियल पर उपहार आदि देती हैं। भाई अगर छोटा हुआ तो उपहार ले लेता है और यदि बड़ा हुआ तो वह अपनी ओर से बहनों को उपहार भेंट करता है।
सुख-दु:ख बांटने का पर्व
पर्व के पीछे दर्शन केवल इतना है कि भाई बहन का रिश्ता प्रगाढ़ रहे। ससुराल पक्ष को लगे कि बहन के सिर पर उसके भाई का साया है। वहीं बहन सदा महसूस करे कि उसके भय को दूर करने वाला यानी भाई सदा उसके साथ है। भय+हाई का अर्थ ही होता है भय का हरण करने वाला…। पर्व पर बहन और भाई एक-दूसरे से पारिवारिक परिस्थितियों पर विचार-विमर्श करते हैं। एक दूसरे को अपनी समस्याएं बताते हैं और उनके निराकरण के लिए मिल-जुलकर प्रयास करने का वचन देते हैं।