अपने आप ऊपर आई प्रतिमा
भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग के अन्तर्गत संरक्षित त्रिपुर सुंदरी मंदिर के समीप हनुमान टेकरी के पास प्रतिमा मिली है। मंदिर के चारों ओर 300 मीटर क्षेत्र पुरातत्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित है। मंदिर से जुड़े शिवराज पटेल ने बताया कि यहां आसपास के क्षेत्र में पत्थरों व अन्य धातुओं के बने जेवर मिलते रहते हैं। इन्हें आम भाषा में गुडिय़ा कहा जाता है। ऐसे ही गुडिय़ा बीनने निकले कुछ युवकों ने यह दुर्लभ प्रतिमा जमीन से निकलती हुई दिखाई दी। उन्होंने इसकी जानकारी त्रिपुर सुंदरी मंदिर समिति को दी। मंदिर समिति के लोग पहुंचे तो उन्हें बड़ी प्रतिमा का छत्र दिखाई दिया फिर उन्होंने तुरंत भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग को सूचना दी। पुरातत्व विशेषज्ञों की टीम ने गुरुवार को खुदाई की तो अद्भुत प्रतिमा निकली। यह प्रतिमा साढ़े 4 फीट ऊंची और करीब साढ़े तीन फीट चौड़ी है। इसे 64 योगिनी मंदिर भेड़ाघाट में सुरक्षित रखा गया है। प्रतिमा की विशेषताएं बताने के लिए दिल्ली और भोपाल से पुरातत्व विशेषज्ञ बुलाएं गए हैं। बताया गया है कि यह दुर्लभ प्रतिमा जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की है।
दसवीं शताब्दी की प्रतिमा
पुरातत्व विशेषज्ञों का कहना है कि तेवर में मिली प्रतिमा 10-11 वीं शताब्दी में निर्मित व कल्चुरी कालीन है। प्रतिमा में जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ सिंह पाद पीठ पर योगासन मुद्रा में विराजमान हैं। पाद पीठ में नीचे उपासक हैं और बगल में छोटे-छोटे आकार के तीर्थंकर दिख रहे हैं। प्रभा मंडल में छत्र के अंकनों में दो गज अभिषेक करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उसके नीचे गगनचारी विद्याधर पुष्पमाला लिए हुए उड़ते हुए नजर आ रहे हैं। सर्वांग सुरक्षित यह प्रतिमा अद्भुत है।
अक्सर मिलते हैं गहने
पुरातात्विक महत्व की गुडिय़ा यानि प्रतिमाओं के गहने काफी कीमतें होते हैं। पुरातत्व के जानकार ग्रामीण एवं दूर-दराज के लोग यहां आकर इस क्षेत्र की मिट्टी में नजर गडा़ते हैं। कई बार उन्हें स्फटिक व बहुमूल्य पत्थरों के गहनें मिल जाते हैं। पुरातत्व विभाग के सुरक्षा गार्ड गुडिय़ा बीनने वालों पर नजर रखते हैं। पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने ऐसे लोगों को धर-पकड़ करने के लिए स्थानीय थाने में शिकायत भी दर्ज कराई है।
बेशकीमती है प्रतिमा
त्रिपुर सुंदरी मंदिर के क्षेत्र में प्राचीन प्रतिमा मिली है। अनुमान है कि दूसरी से 12 वीं शताब्दी के बीच की प्रतिमा है। पुरातत्व विशेषज्ञों के सर्वेक्षण के बाद प्राचीनता और विशेषताएं स्पष्ट तौर पर बता सकूंगी। पुरातत्व के जानकारों के अनुसार प्रतिमा की कीमत लगभग 10 अरब रूपए होगी।
रीता पटेल, एमटीएस, भारतीय पुरातत्व एवं सर्वेक्षण विभाग
हम करेंगे पूजन
श्री पाŸवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर लार्डगंज के अध्यक्ष प्रदीप जैन ने बताया कि कुंडलपुर के बड़े बाबा भगवान आदिनाथ की तरह यह प्रतिमा है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर की प्रतिमा है। जैन समाज ने प्रशासन से प्रतिमा को मंदिर में स्थापित करने पूजा करने की अनुमति मांगी है।
भूगर्भ में प्रतिमाओं का भंडार
इतिहासकार राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि तेवर एक जमाने में वस्तुत: एक समृद्ध शहर रहा है। किसी देश की राजधानी था। यहां त्रिपुरासुर यानी अद्भुत शिल्पकार और विज्ञानी मयासुर का शासन था। उस समय यहां की शिल्प कला समृद्ध थी। वशिष्ठ संहिता में उल्लेख मिलता है कि मयासुर ने यहां पर ही तीन प्रकार के पुरयान यानी उस जमाने के सेटेलाइट बनाए थे, इसलिए इसका नाम त्रिपुर पड़ा था। मयासुर के बाद कालांतर में यहां कल्चुरी राजाओं का शासन काल रहा। इसकी सीमाएं देश के विभिन्न भागों तक फैली हुई थीं। कल्चुरी काल में सनातन धर्म के साथ जैन और बौद्ध धर्म के अनुयायियों का अच्छा प्रभाव था। यही वजह है कि त्रिपुरी में जैन धर्म के तीर्थंकरों के साथ बौद्ध भिक्षुओं और भगवान बुद्ध की भी प्रतिमाएं मिली हैं। भेड़ाघाट में स्थापित 64 योगिनी की प्रतिमाएं और जबलपुर के कमानियागेट के समीप स्थित मां मक्रवाहिनी की अद्भुत प्रतिमा भी इसी धरती के गर्भ की देन हैं। कुछ वर्ष पूर्व यहां पर भगवान महावीर की भी एक प्रतिमा मिली थी, जो बड़े जैन मंदिर में स्थापित है। बताया जाता है कि कल्चुरी वंश ने यहां करीब 400 वर्षों तक शासन किया। उस समय यहां 64 योगिनी परिसर पर स्थित वैदिक विश्वविद्यालय पूरे देश के स्नातकों के लिए आकर्षण का केन्द्र था। यहां आध्यात्म के साथ आयुर्वेद की गहन शिक्षा दी जाती थी। यह पूरा क्षेत्र आध्यात्म और अनूठे शिल्प के लिए जाना जाता था। तेवर क्षेत्र में अब भी हजारों की संख्या में प्रतिमाएं भूगर्भ में दफन हैं। कई प्रतिमाएं तो यहां ऊगे पेड़ों के तनों में फंसकर तक जमीन के ऊपर आ गई हैं।